श्री गुरु गोबिंद सिंह जी { Sri Guru Gobind Singh ji } सिक्खों के दसवें गुरु हुए है । गुरु जी को गद्दी उनके पिता “श्री गुरु तेग बहादुर जी” की तरफ़ से मिली , जो के सिक्ख धर्म के नोवे गुरु हुए थे । श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिक्ख धर्म को एक नई दिशा दी । गुरु जी के नेत्रत्व में बहुत सारे लोग सिक्ख धर्म से जुड़े । गुरु जी ने सिक्खी और गुरुमुखी भाषा के प्रचार पर बहुत अधिक ज़ोर दिया ता जो सभी गुरुमुखी सीख कर “श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी” की सच्ची वाणी को समझ सके ।
गुरु जी ने ख़ालसा पंथ की स्थापना भी की जिससे बहुत धर्मो के लोग गुरु का ख़ालसा बने । गुरु जी ने हमेशा अधर्म और अत्याचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाई और सदा जरूरत मन्दो की सहायता के लिए ततपर रहे ।
जन्म, प्ररंभिक जीवन और परिवार { Birth, Early Life and Family }
गुरु जी का जन्म 5 जनवरी 1666 को “पटना ,बिहार” में हुआ । गुरु जी के जन्म के समय उनका नाम गोबिंद राय रखा गया । गुरु जी ने अपने शुरुआत के चार साल पटना में ही बिताए और 1670 में गुरु जी पंजाब आ गए । गुरु जी ने अपनी सस्त्र ,शास्त्र और गुरुमुखी की विद्या पंजाब में ही प्राप्त की ।
गुरु जी के परिवार की बात करे तो उनके पिता श्री गुरु तेग बहादुर जी थे जो के सिक्खों के नोवे गुरु थे और माता का माता गुजरी जी था ।
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का वैवाहिक जीवन { Marital Life of Sri Guru Gobind Singh Ji }
गुरु जी के जीवन मे उनके तीन विवाह हुए । 10 वर्ष की आयु में गुरु जी का विवाह माता जीतो जी से हुआ जिससे उन्हें पुत्र अजीत सिंह की प्राप्ती हुई । जब गुरु जी की आयु 17 वर्ष की हुई तो उनका दूसरा विवाह माता सुंदरी जी से हुआ , जिससे गुरु जी को तीन पुत्रों “जुझार सिंह, “ज़ोरावर सिंह” और “फतेह सिंह” की प्राप्ति हुई और गुरु जी का तीसरा विवाह 33 वर्ष की आयु में माता साहिब देवान जी से हुआ।
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का गुरु बनना { To become Guru of Sri Guru Gobind Singh }
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी को योग्य जान श्री गुरु तेग बहादुर जी ने 8 जुलाई 1675 को गोबिंद सिंह जी को गुरु की उपाधि दी। जब गुरु गोबिंद सिंह जी सिक्खों के दसवें गुरु बने तब उनकी आयु मात्र 10 वर्ष की थी । परंतु जुल्म और अत्याचार के खिलाफ़ लड़ने का जज़्बा शुरू से ही उनमे भरा हुआ था ।
ख़ालसा पंथ की स्थापना { Establishment of Khalsa Panth }
गुरु जी ने आम जनता पर हो रहे मुग़ल अत्याचार को रोकने के लिए सब को ख़ालसा बना कर उन्हें जुल्म के खिलाफ़ आवाज़ उठाने की प्रेरणा दी । उस समय औरंगजेब के राज में मुग़ल सैनिक भोली-भाली आम जनता पर ज़ोर-जबर्दस्ती कर उनसे उनका धन और अनाज छीन लिया करती थी । जबरन उनसे उनके धर्म भी परिवर्तन करवाए जाते थे । गुरु जी ने सभी को बताया के जो अपने हक और धर्म के लिए लड़े वो ही असल ख़ालसा होता है और फिर एक दिन गुरु जी ने सभी जन को ज़ुल्म के खिलाफ़ आवाज़ उठाने के लिए 1699 ई. को वैसाखी वाले दिन इकठ्ठा किया ।
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के बुलाने पर बहुत सारी सँगते आ गई और भरी सभा मे गुरु जी ने कड़कती आवाज़ में नंगी तलवार लेकर कहा के हमे एक शीश चाहिए क्या कोई हमे अपना शीश भेंट कर सकता है । गुरु जी के बुलाने पर भाई दया राम जी उठ कर सामने आए । इसी तरह गुरु जी ने कुल पाँच शीशो की मांग की । जो पाँच वियक्ति शीश अर्पित करने के लिए आए गुरु जी ने उन्हें पाँच प्यारे कह कर बुलाया ।
गुरु जी ने पाँच प्यारों भाई दया राम,भाई धर्म ,भाई हिम्मत, भाई साहिब और भाई मुकाम जी को पहले अमृत स्काया फिर ख़ुद उनसे अमृत सक कर ख़ालसा बने । गुरु जी और पाँच प्यारों के अमृत सकने के बाद सभी सँगत को अमृत सका कर गुरु जी ने सब को गुरु का सिक्ख बना दिया और ख़ालसा पंथ की स्थापना की । इसी दौरान गुरु जी ने पुरषो को सिंह और महिलायों को कौर उपनाम दिया और खुद भी गोबिंद राय से गोबिंद सिंह बन गए ।
गुरु जी ने सब ख़ालसा को उपदेश दिया के हर ख़ालसा हमेशा धर्म और सच्च के लिए लड़ेगा। कभी किसी बेसहारा पर अत्याचार नही कर और सदा सभ की सहायता के लिए ततपर रहेगा।
इस के इलावा गुरु जी ने सिक्खों को पाँच ककार केश ,कंघा, कड़ा, करपान और कशेरा भी प्रदान किए । जो के हर सिक्ख की पहचान है
आनंदपुर युद्ध { Anandpur war }
गुरु जी ने सभी संगतों को जात-पात रहत कर सभ को एक साथ कर दिया और सभी अमीर-गरीब और ऊच्च-नीच जाति के लोगों को युद्ध कला सिखा निर्भय और स्वतंत्र रहना सिखाया । पहाड़ी राजे यह देख कर बहुत दुःखी थे । पहाड़ी राजे सोंचते थे के सस्त्र विद्या पर केवल खत्रियों का ही अधिकार है।
गुरु जी छोटी जाति वालो को सस्त्र विद्या में निपुण कर रहे है जो कल हमारे लिए ही ख़तरा बनेगे । इस के इलावा बड़ी संख्या में लोग सिक्ख धर्म को अपना रहे थे और सिक्ख कॉम और गुरु जी का रुतवा देख हिंदू पहाड़ी राजे उनसे जलने लगे थे । पहाड़ी राजे ख़ुद तो गुरु जी से जंग में जीत नही सकते थे इएलिय उन्होंने बादशाह औरंगजेब के साथ मिल कर गुरु जी के शासन को ख़त्म करने की नीति बनाई ।
औरंगजेब ने पहाड़ी राजो की सहायता के लिए अपनी 10000 की सेना और अपना सबसे दलेर योद्धा पेंदे खान जंग में भेजा। युद्ध बहुत ही भयंकर हुआ । पेंदे खान युद्ध मे गुरु जी के एक ही तीर से मारा गया और सिक्खों ने मुग़लो समेत पहाड़ी राजो को पीछे धकेल दिया । सिक्ख इस युद्ध मे जेतू रहे ।
परिवार का विछड़ना { Family breakdown }
मुग़लो ने सिक्ख धर्म को ख़त्म करने का पक्का इरादा कर दुवारा आनंदपुर के क़िले पर दावा बोल दिया । परंतु किला ऊच्ची जगहा पर होने के कारण मुग़लो के लिए वार करना आसान नही था । जिस वजह से मुग़लो ने सिक्खों को किले से बाहर आकर लड़ने के लिए मजबूर करना चाहा। मुग़लो ने किले को चारों तरफ़ से घेर कर किले की नाका-बंदी कर दी और किले से बाहर जाने बाले रास्तो पर सेना खड़ी कर दी। मुग़ल सोचते थे के अनाज और अन्य जरूरत की बस्तुएं अगर किले के अंदर नही जाएगी तो सिक्ख भुख के कारण खुद ही किले से बाहर आ जाएंगे परंतु ऐसा नही हुआ। गुरु जी और सिक्खों ने वही पर 7 महीने गुजार दिए पर मुग़लो के आगे नही चुके।
आखिर मुग़लो और पहाड़ी राजाओं ने गुरु जी से किला खाली करवाने के लिए उनसे एक समझौता किया । समझौते के मुताबिक मुग़लो ने इस्लाम और पहाड़ी राजाओं ने गऊ माता की शपथ लेकर गुरु जी को किला खाली कर कहि भी जाने की स्वतंत्रता दी । गुरु जी ने अपने सिक्ख साथियों की भलाई के लिए किला छोड़ दिल्ली जाने का फैसला किया ।
गुरु जी और सभी सिक्ख अभी रास्ते मे ही थे के पहाड़ी राजाओ और मुग़लो में अपना वचन तोड़ सिक्खों पर पीछे से हमला कर दिया । हमले के कारण गुरु जी का पूरा परिवार विछड़ गया । गुरु जी और उनके बड़े साहिबजादे अजीत सिंह और जुझार सिंह गुरु जी के साथ रह गए और माता गुजरी छोटे साहिबज़ादों समेत गंगो तेली के साथ दिल्ली के लिए रवाना हो गए । परंतु गंगो तेली ने शाही ईनाम पाने के लिए आगे चल कर माता गुजरी जी और छोटे साहिबज़ादों को सरहिंद के नवाब वज़ीर खान के पास गिरफ्तार करवा दिया ।
चमकौर का युद्ध { Battle of Chamkaur }
अपने परिवार से अलग होने के बाद गुरु जी 40 सिक्खों जिनमे उनके बड़े साहिबजादे भी सामिल होते है समेत सिरसा नदी पार कर चमकौर पहुँच जाते है । चमकौर में भाई बुद्धि चंद जी गुरु जी का बहुत बड़ा भगत होता है । वह गुरु जी और 40 सिक्खों को उसकी हवेली में सरन लेने के लिए प्रर्थना करता है । गुरु जी और 40 सिक्ख हवेली में रुकते है । परंतु औरंगजेब गुरु जी का पता पा कर नवाब वज़ीर खान को गुरु जी को पकड़ने के लिए भेज देता है । वज़ीर खान के साथ 10,00000 की मुग़ल सेना होती है और गुरु जी के साथ मात्र 40 सिक्ख ।
गुरु जी आठ आठ कर सिक्खों को युद्ध के मैदान में भेजते है और घमासान युद्ध होता है । एकएक सिक्ख सवा लाख मुग़लो पर भारी पड़ता है । युद्ध में गुरु जी के बड़े साहिबजादे अजीत सिंह और जुझार सिंह जी शहीदी प्राप्त करते है । पर सभी सिक्ख बड़ी दिलेरी से लड़ते है । ख़ालसा पंथ की रक्षा के लिए पंज प्यारे गुरु जी को वहाँ से निकल जाने के लिए प्रर्थना करते है और गुरु जी को एक साधारण सिक्ख का भेष धारण कर रात को हवेली से बाहर निकाल दिया जाता है ता जो गुरु जी पंथ को संभाल सके और पंथ पर कोई आंच ना आ पाए ।
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी का आखिरी समय { Last time of Sri Guru Gobind Singh Ji }
1707 ई. में बादशाह औरंगजेब की मौत के बाद उनके भाईयो में राज गद्दी की प्राप्ति के लिए जंग छिड़ गई । औरंगजेब के भाईयो में बहादुर शाह नेक दिल था और उसके गुरु जी से भी संबंध अच्छे थे । राज गद्दी की प्राप्ति के लिए बहादुर शाह ने गुरु जी से जंग में मदद मांगी। गुरु जी बहादुर शाह की मदद करने के लिए इस शर्त पर तैयार हो गए के वह दिल्ली के तख्त पर बैठने के बाद पंजाब में हो रहे ज़ुल्म को रोकेगा और सरहिंद के नवाब वज़ीर खान को उसके किए जुल्मों के लिए सजा देगा। गुरु जी ने बहादुर शाह की सहायता के लिए भाई धर्म सिंह की अगवाई में सिक्ख फ़ौज को भेजा और बहादुर शाह जंग जीत गया ।
बहादुर शाह के राज गद्दी पर बैठने के बाद उसके गुरु जी से किए वादे के मुताबिक पंजाब में सिक्खों ऊपर हो रहे ज़ुल्म के खिलाफ़ तो रोक लगा दी पर वह वज़ीर खान के खिलाफ़ कुछ नही कर पाया । दूसरी तरफ वज़ीर खान गुरु जी के बहादुर शाह से नेड़ता देख कर बहुत घबराह गया था । वज़ीर खान ने गुरु जी को मरवाने के लिए दो पठान नांदेड़ गुरु जी के पास भेज दिया । वह सिक्खों के भेष में ही रह कर सिक्खों में घुल मिल कर रहने लगे और सही समय का इंतजार करने लगे ।
एक रात जब गुरु जी अपने तम्बू में सोए होए थे तो दोनों पठानों ने समय देखकर गुरु जी के ऊपर तलवार से घातक वार कर दिए । एक पठान को तो गुरु जी ने वही पर ही मार दिया और दूसरा भागता हुआ सिक्खों के हाथों मारा गया । तलवार लगने से गुरु जी को काफ़ी गहरे ज़ख्म आए थे । बहुत ईलाज़ करवाने के बाद भी गुरु जी के ज़ख्म भर नही पाए ।
अंतता गुरु जी ने अपना आख़िरी समय निकट जान कर सभी सिक्खों को अपने पास बुलाया और उन्हें अब से किसी भी देह धारी गुरु को ना मान कर “गुरु ग्रंथ साहिब जी” को अगला गुरु घोषित कर सभी को गुरु ग्रंथ साहिब जी को ही गुरु मानने का हुक्म दिया। गुरु जी की तबीयत बहुत खराब हो जाने की वजह से गुरु जी बहुत कमज़ोर हो चुके थे और 42 वर्ष की आयु में गुरु जी 7 अक्टूबर 1708 को जोति जोत समा गए ।