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श्री गुरु हर कृष्ण जी

श्री गुरु हर कृष्ण जी { Sri guru har krishan ji } सिक्ख धर्म के आठवें गुरु हुए है । गुरु जी को गुरु गद्दी की दात अपने पिता श्री गुरु हर राय जी से प्राप्त हुई । श्री गुरु हर कृष्ण जी को बाल गुरु भी कहा जाता है । गुरु जी सभी संगतों में बेहद ही लोकप्रिय थे । कहा जाता है के गुरु हर कृष्ण जी मे सिक्खों के पहले गुरु “श्री गुरु नानक देव जी” की छवि नज़र आया करती थी । कम आयु के बावजूद भी गुरु जी पहले के गुरुओं की तरह ही सिक्ख धर्म का प्रचार किया करते थे और संगतों में ज्ञान भी बांटा करते थे ।

जन्म और परिवार { Early Life and Family }

श्री गुरु हर कृष्ण जी का जन्म 7 जुलाई 1656 में कीरतपुर में हुआ । गुरु जी के पिता गुरुओं के सातवें गुरु रह चुके श्री गुरु हर राय जी थे और माता का नाम कृष्णा देवी था ।
गुरु जी का एक बड़ा भाई राम राय भी था जिसे श्री गुरु हर राय जी ने गुरु ग्रंथ साहिब जी की वाणी की ग़लत व्याख्या करने के कारण त्याग दिया था ।

श्री गुरु हर कृष्ण जी का गुरु बनना { To become Guru of Sri Guru Har Krishan Ji }

गुरु जी को गुरु की उपाधि उनके पिता श्री गुरु हर राय जी से प्राप्त हुई । गुरु जी की आयु मात्र 5 वर्ष की थी जब इन्हें अगला गुरु नियुक्त कर दिया गया था । पर गुरु जी ज्यादा समय तक अपना जीवन वतीत नही कर पाए थे । गुरु जी ने 2 साल 5 महीने 24 दिन तक ही गुरु की उपाधि संभाली।

संगतों का भ्रम दूर करना { Remove the confusion of partners }

छोटी उम्र के गुरु को देख सभी आश्चर्य चकित रह गए । सभ गुरु को एक बालक समझा करते थे । हर कोई सोचने लगा था के अब गुरु नानक देव जी के घर मे पहले वाली बात नही रही है ।
इसी तरह एक बहुत ही ज्ञानी पंडित लाल चंद ने गुरु जी पर सवाल उठाया के तुम ख़ुद को गुरु कहते हो , तुम्हे क्या ज्ञान है ? पंडित लाल चंद ने गुरु जी को कहा अगर तुम्हें ज्ञान है तो मुझे गीता का पाठ सुनाओ और बताऊ के गीता में क्या लिखा है ।

गुरु जी ने पंडित और सभी संगतों के सामने कहा के मैं गीता का पाठ नही करुगा , गीता का पाठ छज्जू राम करेगा ।छज्जू राम गांव का एक अनपढ़ और गरीब व्यक्ति था पर गुरु जी ने अपने चमत्कार से अनपढ़ छज्जू राम से गीता का पाठ करवा सभी का भ्रम दूर कर दिया । जिसके बाद सभ गुरु जी के चरनों में गिर गए और उनसे माफ़ी मांगने लगे ।

दिल्ली जाना { Going to Delhi }

छोटी सी उम्र में ही गुरु जी की लोकप्रियता संगतों में बढ़ती देख औरंगजेब यह बरदास्त नही कर पाया । औरंगजेब ने राजा जय सिंह के हाथ गुरु जी को दिल्ली बुलाने का संदेशा भेजा । राजा जय सिंह गुरु जी के पास औरंगजेब का संदेश लेकर पहुँच और साथ ही में कहा के दिल्ली की सँगते भी आपके दर्शनों के लिए व्याकुल हैं किर्पया आप दिल्ली जा कर उन्हें भी दर्शन दे । गुरु जी ने राजा जय सिंह को कहा के हम केवल दिल्ली की संगतों की इच्छा के लिए ही दिल्ली जायेगे अथ्वा करूर राजा औरंगजेब से कभी नही मिलेंगे ।

औरंगजेब गुरु जी की इस बात से बहुत हैरान हुआ । औरंगजेब सोचता था के जैसे उसने राम राय को अपने वश में कर लिया था वैसे ही गुरु जी को भी अपने वश में कर लूंगा । परंतु ऐसा नही हुआ । दिल्ली में राजा जय सिंह ने गुरु जी के रहने के लिए बंगला साहिब में bndubst किया । पर गुरु जी ने सोचा जहाँ पर करूर राजा औरंगजेब कभी भी आ सकता है और गुरु जी अपने सिक्ख साथियों के साथ सलाह कर भाई कल्याना जी की धर्मशाला में रुके जो के शहर के बीचों बीच थी । उसी समय दिल्ली में चेचक की बीमारी भी फैली हुई थी । गुरु जी ने सभी सिक्खों को जरूरत मन्दो की सहायता करने के लिए कहा । गुरु जी ख़ुद भी सुवा शाम बीमारों की सेवा में लगे रहते ।

श्री गुरु हर कृष्ण जी का आखिरी समय { Last time of sri guru har krishan ji }

अपना पूरा समय चेचक के बीमारों की सेवा में गुज़ारने से गुरु जी ख़ुद भी उस बीमारी से ग्रस्थ हो गए । बहुत तेज़ बुख़ार होने की वजह से गुरु जी की तबियत बहुत बिगड़ गई । गुरु जी ने सभी संगतों को अपने पास बुलाया और कहा के मेरा अंतिम समय आ गया है । पर जब सभी सँगते ने गुरु जी से पूछा के गुरु जी आपके बाद अगला गुरु कौन बनेगा तो गुरु जी ने बाबा बकाला कह कर अगले गुरु की और ईशारा किया । 30 मार्च 1664 को गुरु जी अपनी अंतिम समाधि में वलीन हो गए और अपना शरीर रूपी चोला त्याग सभी से विदा ले गए ।

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