जब भी देश की आज़ादी के लिए दी गई कुर्बानियों की बात की जाती हैं तो कभी भी स्वतंन्त्रता सेनानी Sukhdev Thapar { सुखदेव थापर } की कुबानी को भुलाया नही जा सकता |
देश की आज़ादी में सुखदेव का विशेष योगदान है | इस क्रांतिकारी ने अपनी जान की प्रभाह ना करते हुए मात्र 24 वर्ष की उम्र में ही फांसी का फंदा अपने गले से लगवा लिया और देश के लिए शहीद हो गया । देश भगति की भावना सुखदेव में बचपन से ही कूट-कूट कर भरी हुई थी | इन्होंने देश की आज़ादी के लिए बहुत सारे अंदुलनों में भी संयोग दिया । क्रांतिकारी अंदुलनों के दौरान भगत सिंह और राजगरु इनके परम् मित्र रहे। फाँसी के दुरान भी सुखदेव ,भगत सिंह और राजगुरु को एक साथ ही फाँसी पर लटकाया गया | देश की आज़ादी में सुखदेव , भगत सिंह और राजगुरु का मुख्य योगदान है |
Early Life and Family { प्ररंभिक जीवन और परिवार }
सुखदेव का जन्म पंजाब के लुधियाना ज़िले में 15 मई 1907 को हुआ । इनके पिता का नाम श्री रामलाल और माता का नाम श्रीमती रल्लीदेवी था । सुखदेव का भाई भी था जिसका नाम मथुरादास था । सुखदेव मज़ाकिया और हँसमुख स्वभाव के थे । सुखदेव अपने बचपन में बहुत ही नटखट और शरारती भी थे | परंतू सुखदेव को यह अपने बचपन मे ही समझ आ गया था के देश के लिए स्वतंत्रता कितनी जरूरी है । जलियावाला बाग़ हत्याकांड ने सुखदेव के मन पर बहुत गहरा असर डाला था ।
Meeting bhagat singh { भगत सिंह से मिलना }
गाँधी जी के असहयोग आंदोलन के बाद बहुत सारे भारतीय नोजवानों ने अंग्रेज़ो के स्कूल और कॉलेजों में जाकर पड़ना बंद कर दिया था । उस समय भारतीय नोजवानों के लिए शिक्षा का प्रबंध करने के लिए लाला लाजपत राय जी ने भारीतय नोजवानों के लिए लुधियाना में नेशनल कॉलेज खोला था । जिस में सभी भारतीय नोजवान पड़ा करते थे ।
सुखदेव और भगत सिंह भी नेशनल कॉलेज लुधियाना में एक साथ ही पड़ते थे । सुखदेव शुरू से ही बहुत हँसमुख मजाज और मज़ाकिया थे पर भगत सिंह बहुत कम बोला करते थे और बहुत ही गंभीर इंसान थे । जिस वजह से पहले तो भगत सिंह और सुखदेव की ज़्यादा बनी नही परंतु बाद में दोनों की क्रांतिकारी विचारधारा की वजह से दोनों पक्के मित्र बन गए ।
Establishment of Nozwan Bharat Sabha { नोजवान भारत सभा की स्थापना }
अपनी क्रांतिकारी विचारधारा के चलते सुखदेव और भगत सिंह ने देश के नोजवानों को देश की स्वतंत्रता के प्रति जागरूक करने का निश्च्य किया । जिसके बाद सुखदेव और भगत सिंह ने अपने अन्य साथियों के साथ नोजवानों भारत सभा की स्थापना की । जिसका मक़सद मात्र देश के नोजवानों को देश की स्वतंत्रता का महत्व समझाना ही था ।
Sukhdev Thapar Join HSRA { Hindustan Socialist Republican Association } { हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल होंना }
Hindustan Socialist Republican Association { हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल होंना } एक संगठन था जो चन्द्रशेखर आज़ाद और अन्य कई क्रांतिकारियों द्वारा मिलकर बनाया गया था | HSRA का मकसद केवल देश को अंग्रेजों से आज़ाद करवाना था । सुखदेव और भगत सिंह दोनों ने साथ में ही HSRA { Hindustan Socialist Republican Association } में जुड़ने का फैसला किया | सुखदेव HSRA { Hindustan Socialist Republican Association } के प्रमुख क्रांतिकारियों में शामिल थे | सुखदेव ने hsra में रहते हुए पंजाब और उत्तर-प्रदेश राज्य में क्रन्तिकारी गतिबिधियों को संभालने का कार्य किया |
Revenge of Lala Lajpat Rai’s death { लाला लाजपत राय की मौत का बदला }
लाला लाजपत राय को सुखदेव अपने पिता के समान माना करते थे , और सभी क्रांतिकारी दल के सदस्य उनका बहुत आदर किया करते थे |
परन्तु सुखदेव ,भगत सिंह और चंद्र शेखर आज़ाद जैसे क्रांतिकारीयो की और लाला लाजपत राय की विचारधारा में जमीन आसमान का फर्क था | लाला लाजपत राय जी नरम दल के थे और सुखदेव, भगत सिंह और चंद्र शेखर आज़ाद गर्म दल के थे | लाला जी बिना लड़ाई झगड़े के केवल नारेवाजी से ब्रिटिश सरकार को झुकाना चाहते थे | वह पूर्ण अहिंसावादी थे |
लाला जी 1928 लाहौर में साईमन के खिलाफ नारेवाजी में लाठी चार्ज के दौरान बहुत घायल हु गए थे | उन्हें तुरंत हस्पताल में लाया गया | पर वह बच नहीं पाए | लाला लाजपत राय जी ने आखरी वार कहा के ” मेरी मौत ब्रिटिश सरकार के ताबूत पे आखरी कील साबित होगी |”
लाला जी की मौत ने सुखदेव ,भगत सिंह , राजगुरु ,चन्दरशेखर आज़ाद और जयगोपाल को बहुत आहत किया | उन्होने लाला जी की मौत का बदला जेम स्कॉट से लेने की योजना बनाई | यह पूरी योजना सुखदेव दुवारा ही बनाई गई थी । परंतू स्कॉट को मरने के लिए भगत सिंह , राजगुरु ,चंद्र शेखर और जय गोपाल गए । चारो ने लाहौर कोतवाली के सामने डेरा जमा लिया और स्कॉट का इंतजार करने लगे | पर उन्होने स्कॉट की जगा गलती से सांडर्स की हत्या कर दी , इसी घटना के दौरान भाग दौड़ में चन्दरशेखर आज़ाद ने एक थानेदार चनन सिंह को गोली मार दी जो के उनका पीछा कर रहा था और तुरंत वहा के D.A.V. स्कूल के पीछे के रस्ते से सभी भाग गए |
अगली सुबह सुखदेव ,भगत सिंह , राजगुरु , जयगोपाल और चन्दरशेखर आज़ाद ने पर्चे बना कर वांट दिए के हमने लाला लाजपत राय जी का बदला सांडर्स की हत्या से ले लिया है |
Conflict of Public Safety Bill and Trade Dispute Bill { पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल का बिरोध }
8 अप्रैल 1928 को भारत में 2 बिल पास किए गए थे , पब्लिक सेफ्टी बिल { Public safty bill } और ट्रेड डिस्प्यूट बिल {Trade dispute bill } | दोनों बिल ही भारत के हित में नहीं थे |
Public safty bill { पब्लिक सेफ्टी बिल } :
पब्लिक सेफ्टी बिल ब्रिटिश सरकार ने पब्लिक की सुरक्षा के लिए पास किया था , परंतु ये भारतीयों के लिए बिलकुल भी अच्छा साबित नहीं हुआ | इस बिल के तहत ब्रिटिश सरकार किसी को भी शक के आधार पर गिरफ़्तार कर सकती थी | ब्रिटिश सरकार ने इस का प्रयोग भारतीयों दोवारा की जा रही क्रांतिकारी गतिबिधिओ को रोकने के लिए किया |
Trade dispute bill { ट्रेड डिस्प्यूट बिल } :
ब्रिटिश सरकार भारतीयों से 24-24 घंटे काम करवाया करती थी , बच्चे ,बूढ़े और औरतो से भी काम करवाया जाता था | ट्रेड डिस्प्यूट बिल के तहत कोई भी कर्मचारी ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज़ नहीं उठा सकता था और ना ही कोई मजदूर यूनियन बनाई जा सकती थी | भारतीयों को बिलकुल दवा लिया गया था |
इस अन्याय को रोकने के लिए और इसका बिरोध करने के लिए सुखदेव ,चन्दरशेकर आज़ाद ,भगत सिंह और उनके साथियो ने असेंबली में बम्ब फोड़ने की योजना बनाई | क्युकि उनका कहना था के बहरो को सुनाने के लिए धमाका जरूरी है |इस काम के लिए पहले भगत सिंह को नहीं भेजा जा रहा था , क्योकि योजना यह थी के जो असेंबली में बम्ब फेकने जाएगा वह अपनी गिरफ़्तारी देगा | क्रन्तिकारी अदालत को अपना मंस बना कर अपनी बाते पुरे देश में फैलाना चाहते थे | सब जानते थे के जो भी जाएगा वह वापस नहीं आ पाएगा ,इसलिए चन्द्रशेख़र आज़ाद भगत सिंह को नहीं भेजना चाहते थे | क्युकी असेम्बी में बम्ब फेकने की योजना भगत सिंह की थी इस लिए सुखदेव ने ही उन्हें असेंबली में जाने के लिए भी प्रेरत किया |
सुखदेव जानता था के जितनी अच्छी तरह से भगत सिंह क्रांतिकारियों के विचारों को साम्हने रख सकते है ,उतनी अच्छी तरह से और कोई नहीं रख सकता |आख़िरकार 6 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को इस योजना को अंजाम देने के लिए भेजा गया | पर उनका मक्सद केवल अंग्रेजो को अपना बिद्रोह प्रदर्शित करना था ना के किसी को चोट पहुंचाना |
इस लिए उन दोवारा फेके गए बॉम्ब लौ डेंसिटी के थे और बॉम्ब को असेंबली की खाली जग़ह में फेका गया था | बॉम्ब फेकने के बाद भगत सिंह , बटुकेश्वर दत्त ने इन्कलाब जिन्दाबाद के नारे लगाने शुरू कर दिए और पर्चे फेकने शुरू कर दिए जिन पे लिखा था ” वहरो को सुनाने के लिए धमाका जरूरी है ” | बॉम्ब फेकने के वाद वो चाहते तो भाग सकते थे पर उन्होंने अपनी मर्जी से अपनी गिरफ्तारी दी ताकि कोई उन्हें आतंकवादी ना समझे |
Sukhdev Thapar was captured by the British { सुखदेव का अंग्रेजो द्वारा पकड़े जाना }
सांडर्स की हत्या और असेंबली बम्ब धमाके के बाद अंग्रेज सरकार ने क्रांतिकारियों को पकड़ने का आदेश जारी कर दिया था । अंग्रेज सरकार पहले से ही जानती थी के सांडर्स की हत्या के पीछे क्रन्तिकारी सुखदेव ,राजगुरु , भगत सिंह और उनके साथियों का हाथ है । भगत सिंह, राजगुरु और कई क्रांतिकारियों के पकड़े जाने के बाद अंग्रेज सरकार ने अचानक HSRA { Hindustan Socialist Republican Association } की बोम्ब बनाने के अड्डे पर धावा बोल सुखदेव और उनके साथियों समेत गिरफ़्तार कर लिया ।
Sukhdev Thapar in jail { जेल में सुखदेव }
गिरफ्तारी के वाद क्रांतिकारियों का जीवन जेल में काफी कठिन गुजरा | सुखदेव ,भगत सिंह और राजगुरु लगभग 2 साल जेल में रहे | उनसे उनके साथियो का पता पूछने के लिए कई यातनाएं दी गई अथवा कई बड़े अफसरों दोवारा ये दिलासे भी दिए गए के अगर वह अपने क्रांतिकारी साथियो के वारे में और उनकी चल रही गतिबिधियो के वारे में बता दे तो उन्हें जेल से छोड़ दिया जाएगा |
इन सब के इलावा जेल में अंग्रेज कैदियों के मुकाबले भारतीय कैदियों के साथ बहुत बुरा स्लूक किया जा रहा था | भारतीय कैदियों का खाना जहां बनाया जा रहा था वहां कॉकरोच और चूहे दौड़ रहे होते थे और उनका खाना बाथरूम में पकाया जाता था | खाना बिलकुल भी खाने लायक नहीं होता था | भारतीय कैदियों को दिए जाने वाले कपड़े भी फ़टे पुराने और कई दिन के धुले नहीं होते थे | एक ही कमरे में कई कैदियों को रखा जाता था और पड़ने के लिए अख़बार अथवा पेन कॉपी का प्रबन्ध भी नहीं था |
भगत सिंह ने इन सब के खिलाफ आवाज़ उठाई | उन्होने कहा हम इंसान है हमारे साथ इंसानो जैसा विवहार किया जाये | हमे ढंग के कपड़े ,खाना और पड़ने लिखने के लिए किताब और पेन कॉपी दिए जाए | भगत सिंह ने कहा अगर हमे ढंग का खाना नहीं मिलेगा तो हम खाना नहीं खायेगे और उन्होने जेल में भूखहड़ताल कर दी | भगत सिंह के साथ इस भूख हड़ताल में सुखदेव ,राजगुरु और उनके साथ पकड़े गए उनके क्रांतिकारी साथी भी शामिल थे । सुखदेव और उनके साथियो को जेल में अंग्रेजों दोवारा बहुत मारा पीटा गया , उन्हें घंटों तक बर्फ़ पर लिटा कर रखा जाता और चाबुक से मारा जाता था | अंग्रेजों दोवारा उनकी भूखहड़ताल तुड़वाने के लिए उनके पानी की जगह दूध रख दिया जाता था तांकि उनकी भूखहड़ताल तुड़वाई जा सके | भूखहड़ताल में एक क्रांतिकारी जतिंदरदास शहीद हो गए |
आख़िर अंग्रेज सरकार को 64 दिन की भूखहड़ताल के वाद उनके आगे घुटने टेकने पड़े और सब सुबिधाएँ देनी पड़ी जो भगत सिंह ने माँगी थी |
23 मार्च 1931 { Hanging Day }{ फांसी का दिन }
लगभग 2 साल की कैद के वाद भगत सिंह ,राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च 1931 को फांसी दे देने की सजा सुना दी गई | देश में रोश न फैले इस लिए अंग्रेज सरकार ने उन्हें 24 मार्च की जगह 23 मार्च की साम को ही फांसी दे दी | फांसी के वाद भारतीयों दोवारा कोई आंदोलन न भड़क जाए इसके डर से अंग्रेज सरकार ने भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव के शरीर के कुल्हाड़ी से टुकड़े कर बोरी में भर लिए और जेल की पीछे की दिवार तोड़ कर इनके मृत्तक शरीर को फ़िरोज़पुर लिजाया गया और मिटी का तेल डाल कर जलाने लगे | आग जलते देख गांव के लोग उनकी और बढ़ने लगे लोगो के डर से अंग्रेजो ने उनके अधजले शरीर को सतलुज नदी में फेक दिया और भाग गए |
गांव के लोगो दोवारा भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव के मृत्तक शवों को नदी से निकाला गया और बिधि पूर्वक उनका अंतिम संस्कार किया गया |