स्वामी विवेकानंद जी { Swami Vivekananda } एक सन्यासी थे | वह एक ऐसे संत थे , जिन्होने भारत के वेदो , पुराणो और अन्य ग्रंथों का ज्ञान पूरी दुनिया में फैलाया था | उन्होने पूरी दुनिया में भारत की महानता का पर्चम गाढ़ा था |
स्वामी विवेकानंद अपने देस भारत से बहुत प्यार करते थे | एक सन्यासी होने के बावजूद भी उन्होने अपने देश के बारे में सोचा , अपने देश की प्रगति के बारे में सोचा , अपने देश के नीची वर्ग के लोगो के बारे में सोचा , महिलाओं की शिक्षा के बारे में जागरूकता फैलाई और पूरा देश घूम कर कई ऐसे कार्य किए जो देश के हित में थे |
स्वामी विवेकानंद कहते अगर में चाहता तो कही दूर हिमालय में जा कर रह सकता हूँ , वहा अपनी थोड़ी सी जमीन खरीद कर , अपनी एक छोटी सी कुट्टिया बना कर रहुँ | थोड़ी सी जमीन पर स्वयं ही खेती करो और अपना भोजन बनाऊ और वहा की सन्ति में समाज से दूर रह कर पूरा दिन स्माधि में लीन रहो ,” ऐसी स्वामी विवेकानंद जी की दिली इच्छा थी “, परंतु उन्होने अैसा ना करते हुए अपने देश की प्रगति में अपना योगदान दिया |
स्वामी विवेकानंद के विचार और ज्ञान भारत ही नहीं ब्लकि पूरी दुनिया कि लिए सार्थक साबित हुए है | उनके विचार क्रांतिकारी भावों से भरे होते थे , जो आज भी युवाओं को उत्साह से भर देते है | स्वामी विवेकानंद जी के जन्म दिन को आज पुरे भारत में राष्ट्रीय युवा दिवश के रूप में 12 जनवरी को मनाया जाता है |
स्वामी विवेकानंद जी बहुत सारे महान पुरषो के लिए प्रेरणा स्रोत थे ,जैसे भगत सिंह ,महात्मा गाँधी , टेस्ला ,रविन्दरनाथ टैगोर ,पं.जवाहर लाल नेहरू इत्यादि |
भगत सिंह एक नास्तिक थे , परन्तु नास्तिक होने के वाबजूद भी वह भगवद गीता की एक छोटी किताब और स्वामी विवेकानंद जी का एक चित्र अपनी जेब में जरूर रखते थे |
जन्म , प्ररंभिक जीवन और परिवार { Birth , Early Life And Family }
स्वामी विवेकानंद जी { Swami vivekananda } के पिता का नाम श्री विश्वनाथ दत्त था | जो के कलकत्ता के हाईकोर्ट में एक उच्च वकील की पद्धति पर थे ,और उनकी माता का नाम श्री मति भुवनेश्वरी देवी था , जो के बहुत ही धार्मिक विचारो वाली थी | वह अपना ज्यादा समय शिव भगति ,गीता ,रामायण और महाभारत की कथाओं को पड़ने में लगाती थी |
भुवनेश्वरी देवी भगवान शिव से प्राथना करती है के उन्हें आप जैसे ही एक बालक की प्राप्ती हो | भगवान शिव उनके सपने में आते है और उन्हें आशीर्वाद देते है |
भगवान शिव के आशीर्वाद से 12 जनवरी 1863 को { कलकत्ता } स्वामी विवेकानंद जी का जन्म होता है | पिता विश्वनाथ दत्त और माता भुवनेश्वरी देवी बहुत खुश होते है | स्वामी विवेकानंद जी को नरेंदर नाथ दत्त नाम दिया जाता है ,उन्हें नरेन कह कर भी बुलाया जाता है |
स्वामी जी का परिवार समाज भलाई करता और बहुत धार्मिक विचारो वाला था | उनके घर से कभी कोई गरीब जा संत महात्मा भूखा नहीं लोटा करता था | घर में प्रतिदिन पूजा , भगवद गीता ,रामायण और महाभारत का उच्चारण किया जाता था |
माता भुवनेश्वरी देवी पुत्र नरेन को भी धार्मिक ग्रंथो का ज्ञान सिखाया करती थी अथ्वा उनकी दादी भी उन्हें धार्मिक ग्रंथो और उपनिष्दों का ज्ञान दिया करती थी | नरेंदर इन्हे बड़े ध्यान और उत्साह से सुना करते थे |
जहि कारन था के नरेंदर को बचपन से ही भगवान के बारे में जानने और उन्हें पाने की तीव्र इच्छा होने लगी थी |
स्वामी विवेकानंद जी { नरेंदर } बचपन में बहुत शरारती भी हुआ करते थे | उन्हें संतो की बाते सुनना और उनसे ज्ञान अर्जित करने में बहुत आनंद आता था | इस वजय से जब भी कोई संत या महात्मा उन्हें मिलते तो वह उनसे बहुत बाते करते और उन्हें सब कुछ दान कर देते | वह अपने घर की वस्तुए और अनाज संतों को दे दिया करते थे |
उनकी इस ज्यादा देने की आदत को रोकने के लिए उनकी माँ ने उन्हें एक बार एक कमरे में बंद कर दिया, परन्तु तब उन्होने खिड़की से समान फेकना शुरू कर दिया |
स्वामी विवेकानंद जी की शिक्षा { Education of Swami Vivekananda }
विवेकानंद जी वचपन से पड़ने में बहुत तीव्र बुद्धि के मालिक थे | वह पड़ने में बहुत तेज़ थे | वह बहुत ही हुशियार और समझदार थे |
स्वामी जी ने 8 साल की उम्र में ईश्वर चंद्र विद्यासागर मेट्रोपोलिटन संस्था में दाख़िला लिया जहां वह पहली बार स्कूल गए | 1879 में उन्होने कलकत्ता में प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रवेश परिक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया |
स्वामी जी दर्शन, धर्म, इतिहास, समाजिक विज्ञानं, कला और सहित्य को रूचि पूर्वक पड़ा करते थे, इसके इलावा वह वेद, पुराण, रामायण, उपनिष्द, भगवद गीता, महाभारत, योग विज्ञानं और अन्य धार्मिक ग्रंथो के भी ज्ञाता थे |
स्वामी विवेकानंद जी पढ़ाई के साथ-साथ खेल कूद में भी अपना पूर्ण योगदान दिया करते थे, वह कुश्ती, बॉक्सिंग, फुटबॉल, योग और कब्बड़ी में भी अव्वल रहते थे |
उन्होने कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी.ए. उत्तीर्ण की डिग्री की थी और कानून की शिक्षा भी प्राप्त की थी |
परन्तु वचपन से ही भगवान को पाने की लालसा के कारण उन्हें किताबी ज्ञान से संतुष्टि प्राप्त नहीं हो पा रही थी | वह भगवान को जानना चाहते थे | जिस वजह से वह सब से पहले ब्रह्म समाज में गए, जो के बताता था के भगवान निराकार है | बहुत सारे धर्म के बिख्यातायो को सुनने के बाद स्वामी विवेकानंद जी हर बिख्याता से जे ही प्रशन पूछा करते थे के क्या आपने भगवान को देखा है, परंतु उन्हें कोई उत्तर ना मिलता |
अपने प्रशनो के उत्तर ना मिलने की वजह से उन्हें ब्रह्म समाज में भी संतुष्टि नहीं मिली |
उसके बाद एक बिख्याता के माध्यम से ही स्वामी विवेकानंद जी रामकृष्ण परमहंश से मिले | जो के एक मात्र ऐसा इंसान था, जिसने विवेकानंद जी को कहा था के उसने भगवान को देखा है और वह तुम्हे भी भगवान से मिलाएगा |
पहले तो विवेकानंद जी रामकृष्ण की बात नहीं माना करते थे और उनसे कई वार वहस भी किया करते थे | स्वामी विवेकानंद जी रामकृष्ण परमहंश का पीठ पीछे मजाक भी उड़ाया करते थे | परंतु धीरे-धीरे उन्हें बोध हो गया के जही एक मात्र इंसान है जो सत्य बोल रहा है और फिर स्वामी विवेकानंद जी ने रामकृष्ण परमहंश को पूरी निष्ठां से अपना गुरु मान लिया |
रामकृष्ण परमहंश ने ही विवेकानंद जी को आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति करवाई |
गुरु रामकृष्ण परमहंस जी की मृत्यु { Death of guru ramakrishna paramhans ji }
एक समय ऐसा आता है जब रामकृष्ण परमहंस का स्वास्थ्य दिन प्रति दिन बिगड़ने लगता है | उन्हें गले के कैंसर की बीमारी हो जाती है | स्वामी विवेकानंद जी उनके आखरी समय में सब कुछ छोड़ कर केवल अपने गुरु की सेवा में वलीन रहते है | वह पूरी निष्ठां से अपने गुरु की सेवा करते है | रामकृष्ण परमहंश जी को यह अहसास हो जाता है कि अब वह ज्यादा समय जिन्दा नहीं रह पाएंगे |
रामकृष्ण अपने अंतिम समय में स्वामी विवेकानंद को कहते है कि मैंने अपना पूरा ज्ञान तुम्हे दे दिया है और मैं चाहता हो कि अब तुम इस ज्ञान को पूरी दुनिया में वांटो और लोगो का सही मार्ग दर्शन करो | इसके बाद एक समय ऐसा आता है जब रामकृष्ण बहुत बीमार पड़ जाते है और एक दिन समाधि में ही वलीन मृत्यु को प्राप्त हो जाते है |
विवेकानंद जी दोवारा लोगो की भलाई के लिए 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना करवाई गई थी | जिसका पहला मठ कलकत्ता और दोसरा मठ अल्मोड़ा { उत्तराखंड } में स्थापित किया गया | रामकृष्ण मिशन का उद्देश्य समाज भलाई था | रामकृष्ण मिशन के दोवारा भूखो को खाना खिलाना ,नौजवान युवाओं को जागरूक करना ,नशे छुड़वाना और लोगो को शारीरक और मानशिक शिक्षा प्रदान करना था |
स्वामी विवेकानंद जी की यात्राएँ { Journey of Swami Vivekananda }
स्वामी विवेकानंद जी को जब पूर्ण ज्ञान हो गया तो वह अपने गुरु के कहे मुताबिक वेदों और धर्मो का ज्ञान वाँटने के लिए निकल पड़े | उन्होने 25 वर्ष की आयु में गेरुया वस्तर धारण कर लिए थे और पैदल ही पुरे भारत में हिमालय से लेकर कन्या कुमारी तक प्रचार किया | वह भिक्षा मांग कर पेट भरते और भाषण दे कर ज्ञान वांटा करते थे |
पुरे भारत की यात्रा के बाद वह अन्य देशो में गए जैसे जापान [ जापान के मुख्य शेहरो कोबे, नागाशाकी, जोकोहामा, ऊशक ] में उन्होने प्रचार किया | इसके बाद चीन और कनाडा में प्रचार किया और उन्हें तब पुरे विश्व में जाना जाने लगा जब उन्होने 11 सितम्बर 1893 में अमेरिका के शिकागो शहर में एक विश्व धर्म सम्मेलन के दौरान अपना भाषण दिया |
स्वामी विवेकानंद जी की भाषण की पहली लाइन ” मेरे अमेरिकी भाईयों और बहनों ” ने सब को बहुत प्रभावित किया था | विवेकानंद जी के इस भाषण ने उन्हें पुरे अमेरिका और पुरे विश्व में प्रसिद्धि दिलाई | कुछ साल विदेशो की यात्रा के बाद विवेकानंद जी अपने देश भारत लोट आए और जहि अपना ज्ञान वाँटने लगे |
स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु { Death of Swami Vivekananda }
लगातार भाषण देने और यात्राएँ करने की वजहा से विवेकानंद जी का स्वास्थ्य दिन प्रति दिन खराब होता जा रहा था | वह लगातार कई घंटो तक भाषण दिया करते थे | वह अपने खान पान का भी सही ढंग से ध्यान नहीं रख पा रहे थे | उन्हें जहां से जो खाने को मिलता वो खा लेते अगर नहीं मिलता तो बिना खाए ही आगे चल पड़ते | कभी -कभी तो उन्हें दो -दो दिन तक भूखा ही रहना पड़ता था |
इसके साथ उन्हें कई बीमारियां जैसे : वि.पि., शुगर, अस्थमा आदि ने भी जकड़ रखा था |
स्वामी विवेकानंद जी ने पहले ही बता दिया था के वह अपना 40 वां जन्म दिन नहीं देखेंगे | इसी दौरान 4 जुलाई 1902 में 39 वर्ष की आयु में इस महान पुरष ने स्माधि में ही अपना शरीर छोड़ दिया और भगवान में वलीन हो गए |
स्वामी विवेकानंद जी के कुछ मुख्य विचार { Some main ideas of Swami Vivekananda }
- उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाये |
- खुद को कमजोर समझना सबसे बढ़ा पाप है |
- सत्य को हजारो तरीको से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा |
- दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो |
- किसी दिन, जब आपके सामने कोई समस्या नाआये आप सुनिश्चित हो सकते है कि आप गलत मार्ग पर चल रहे है |
- चिंतन करो, चिंता नहीं, नए विचारो को जन्म दो |
- हम वो है जो हमे हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखिये कि आप क्या सोचते है |
- जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते |
- जैसा तुम सोचते हो,वैसे ही बन जाओगे | खुद को निर्बल मानोगे तो निर्बल और सबल मानोगे तो सबल ही बन जाओगे |
- जो कुछ भी तुमको कमजोर बनाता है शारीरिक, बौद्धिक या मानशिक उसे जहर की तरह त्याग दो |