मुंशी प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय था। उनका जन्म सन १८८० में वाराणसी जिले के लमही गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम अजायब राय और माता का नाम आनन्दी देवी था। अजायब राय एक दाकखाने में क्लर्क थे और उनकी मासिक वेतन केवल २० रुपए थे। घर की आर्थिक स्थिति सामान्य थी। प्रेमचंद को उर्दू और फारसी पढ़ने के लिए गाँव के मौलवी साहब के मदरसे में भेजा गया।
जब प्रेमचंद आठ वर्ष के थे, तब उनकी माता का देहांत हो गया। पिता को दूसरी जगह होता रहता था, जिससे प्रेमचंद को नई नई जगहें देखने का मौका मिलता था, लेकिन वह पढ़ाई के लिए समय नहीं निकाल पाते थे।
जब उनकी आयु १३ वर्ष की थी, तब उनके पिता को गोरखपुर में तबादला हो गया। वहां उनका परिचय एक पुस्तक विक्रेता से हुआ और प्रेमचंद ने उसकी दुकान पर जाना शुरू कर दिया।
दुकान से प्रेमचंद को पढ़ाई के लिए कहानियों की पुस्तकें मिलती थीं। इस प्रकार उनकी रुचि पढ़ाई में बढ़ी और उन्होंने उर्दू के श्रेष्ठ उपन्यासकारों की सारी पुस्तकें पढ़ डाली जो उस दुकान में उपलब्ध थीं।
उनका विवाह हो गया और उनकी इच्छा थी कि वे M.A. पास करके वकील बनें, पर उनके पिता का स्वर्गवास हो गया और परिवार का पूरा बोझ प्रेमचंद ने इस दुःखद परिस्थिति में भी हार नहीं मानी और अपनी पढ़ाई जारी रखी।
उन्होंने अपनी पढ़ाई के लिए वाराणसी से पाँच मील दूर के क्रीन्स कॉलेज में जाने का निर्णय लिया। वहां से उन्होंने ट्यूशन लेते हुए अपनी पढ़ाई को जारी रखा।
इसके बावजूद, उन्हें केवल पाँच रुपए मिलते थे, जिनसे वे घर और पढ़ाई का खर्च चलाते थे। मैट्रिक परीक्षा में उन्होंने उत्तीर्ण होकर द्वितीय श्रेणी में आए।
अगले कदम में उन्होंने क्वीन्स कॉलेज में प्रवेश लेने का इरादा किया, लेकिन वहां की फीस उनके लिए बोझिल थी। अर्थात, केवल प्रतम श्रेणी के उत्तीर्ण छात्रों को ही फीस माफ की जाती थी।
एक दिन, प्रेमचंद ने अपनी गणित की पुस्तकें बेचने के लिए एक दुकान पर जाने का निर्णय लिया। वहां के स्कूल के हेडमास्टर से मिलकर उन्होंने अपने पूर्व की कठिनाइयों के बारे में सुना।
हेडमास्टर ने प्रेमचंद की समस्याओं पर ध्यान दिया और उन्हें अपने स्कूल के अध्यापक बना दिया। प्रेमचंद ने उर्दू में कहानियाँ लिखना शुरू कर दिया था और उनकी रचनाएँ जमाना पत्र में प्रकाशित होने लगी थीं।
उनकी कहानियाँ लोकप्रिय हो गईं और उनकी रचनाएँ हड़ब प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित होती थीं, लेकिन उनका सारा लाभ प्रकाशकों को जाता था।
प्रेमचंद ने सैकड़ों कहानियाँ लिखीं, जिनका संदेश मानवीय भावनाओं का सर्जीव चित्रण करता था। उनके उपन्यास गोधान, जो देश की तत्कालीन परिस्थितियों का स्पष्ट चित्रण करता है, ने भी काफी प्रशंसा प्राप्त की।
भारतीय नारी के आदर्शों का चित्रण कर प्रेमचंद ने अपनी आस्था व्यक्त की और उन्होंने अपनी कहानी “मानसरोवर” में भारतीय संस्कृति के प्रति अपनी श्रद्धाभक्ति दिखाई।
प्रेमचंद की रचनाओं में मनोहर कहानियाँ, जो उन्होंने “सारात” नाम से लिखीं, भी प्रमुख हैं, जो उनकी अनुभवशीलता और भाषा कुशलता को प्रमोट करतीं हैं।
प्रेमचंद की शोध से भरपूर रचनाएँ, उनका साहित्यिक योगदान आज भी हमारे साहित्य समाज में महत्वपूर्ण हैं। उनके अंतिम दिनों में भी, वे लगातार लिखते रहे और उनकी सोचने की क्षमता में कमी नहीं आई।
प्रेमचंद ने अपने योगदान से समाज को जागरूक किया और उनका साहित्य सामाजिक सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उनकी अनमोल रचनाओं के माध्यम से हम आज भी उनकी शिक्षाओं से प्रेरणा लेते हैं। इस प्रकार, मुंशी प्रेमचंद का योगदान हमारे साहित्य और समाज के लिए अद्वितीय है।
| वास्तविक नाम | धनपत राय श्रीवास्तव [1] |
| उपनाम | • मुंशी प्रेमचंद • नवाब राय नोट: उनके चाचा महाबीर ने उन्हें "नवाब" उपनाम दिया था, जो एक अमीर जमींदार थे। |
| व्यवसाय | • कवि • उपन्यासकार • लघुकथा लेखक • नाटककार |
| जाने जाते हैं | भारत में सबसे महान उर्दू-हिंदी लेखकों में से एक होने के नाते |
| करियर | |
| पहला उपन्यास | देवस्थान रहस्य (असरार-ए-म'आबिद); 1903 में प्रकाशित |
| आखिरी उपन्यास | मंगलसूत्र (अपूर्ण); 1936 में प्रकाशित |
| उल्लेखनीय उपन्यास | • सेवा सदन (1919 में प्रकाशित) Seva Sadan • निर्मला (1925 में प्रकाशित) Nirmala • गबन (1931 में प्रकाशित) Gaban • कर्मभूमि (1932 में प्रकाशित) Karmabhoomi • गोदान (1936 में प्रकाशित) Godan |
| पहली प्रकाशित कहानी | दुनिया का सबसे अनमोल रतन (1907 में उर्दू पत्रिका ज़माना में प्रकाशित) Duniya Ka Sabse Anmol Ratan |
| आखिरी प्रकाशित स्टोरी | क्रिकेट मैचिंग; उनकी मृत्यु के बाद 1938 में ज़माना में प्रकाशित हुई |
| उल्लेखनीय लघु कथाएँ | • बड़े भाई साहब (1910 में प्रकाशित) Bade Bhai Sahab • पंच परमेश्वर (1916 में प्रकाशित) Panch Parameshvar • बूढ़ी काकी (1921 में प्रकाशित) • शतरंज के खिलाड़ी (1924 में प्रकाशित) • नमक का दरोगा (1925 में प्रकाशित) Namak Ka Daroga • पूस की रात (1930 में प्रकाशित) Poos Ki Raat • ईदगाह (1933 में प्रकाशित) • मंत्र |
| व्यक्तिगत जीवन | |
| जन्मतिथि | 31 जुलाई 1880 (शनिवार) |
| जन्मस्थान | लमही, बनारस राज्य, ब्रिटिश भारत |
| मृत्यु तिथि | 8 अक्टूबर 1936 (गुरुवार) |
| मृत्यु स्थल | वाराणसी, बनारस राज्य, ब्रिटिश भारत |
| मृत्यु कारण | लम्बी बीमारी के चलते मृत्यु |
| आयु (मृत्यु के समय) | 56 वर्ष |
| राशि | सिंह (Leo) |
| हस्ताक्षर/ऑटोग्राफ | Munshi Premchand's signature |
| राष्ट्रीयता | भारतीय |
| गृहनगर | वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत |
| धर्म | हिन्दू |
| जाति | कायस्थ: [2] |
| स्कूल/विद्यालय | • क्वींस कॉलेज, बनारस (अब, वाराणसी) • सेंट्रल हिंदू कॉलेज, बनारस (अब, वाराणसी) |
| कॉलेज/विश्वविद्यालय | इलाहाबाद विश्वविद्यालय |
| शैक्षिक योग्यता | • प्रेमचंद ने वाराणसी के लम्ही के एक मदरसे में एक मौलवी से उर्दू और फारसी का अध्ययन किया। • उन्होंने क्वीन्स कॉलेज से मैट्रिक की परीक्षा द्वितीय श्रेणी के साथ उत्तीर्ण किया। • उन्होंने 1919 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य, फारसी और इतिहास में बीए किया। [3] |
| विवाद | • उनके कई समकालीन लेखकों ने अक्सर उनकी पहली पत्नी को छोड़ने और एक बाल विधवा से शादी करने पर उनकी आलोचना की। यहां तक कि उनकी दूसरी पत्नी, शिवरानी देवी ने अपनी पुस्तक "प्रेमचंद घर में" में लिखा है कि उनके अन्य महिलाओं के साथ भी संबंध थे। • विनोदशंकर व्यास और प्रवासीलाल वर्मा, जो उनके प्रेस "सरस्वती प्रेस" में वरिष्ठ कार्यकर्ता थे, ने उन पर धोखाधड़ी करने का आरोप लगाया था। • बीमार होने पर अपनी बेटी के इलाज के लिए रूढ़िवादी हथकंडे अपनाने के लिए उन्हें समाज के एक धड़े से आलोचना मिली। |
| प्रेम संबन्ध एवं अन्य जानकारियां | |
| वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
| विवाह तिथि | • वर्ष 1895 (पहली शादी, अरेंज मैरिज) • वर्ष 1906 (दूसरी शादी, लव मैरिज) |
| परिवार | |
| पत्नी | • पहली पत्नी: उन्होंने 15 साल की उम्र में 9वीं कक्षा में पढ़ते समय एक अमीर जमींदार परिवार की लड़की से शादी कर ली। • दूसरी पत्नी: शिवरानी देवी (बाल विधवा) Premchand with his second wife Shivarani Devi |
| बच्चे | बेटा - 2 • अमृत राय (लेखक) Munshi Premchand's Son Amrit Rai (Author) • श्रीपथ राय बेटी - कमला देवी नोट: उनके सभी बच्चे उनकी दूसरी पत्नी से हैं। |
| माता/पिता | पिता - अजायब राय (डाकघर में क्लर्क) माता - आनंदी देवी |
| भाई/बहन | भाई - ज्ञात नहीं बहन - सुग्गी राय (बड़ी) नोट: उनकी दो और बहनें थीं जिनकी मृत्यु शिशु अवस्था में हो गई थी। |
| पसंदीदा चीजें | |
| शैली | कथा |
| उपन्यासकार | जॉर्ज डब्ल्यू एम रेनॉल्ड्स (एक ब्रिटिश कथा लेखक और पत्रकार) [4] |
| लेखक | चार्ल्स डिकेंस, ऑस्कर वाइल्ड, जॉन गल्सवर्थी, सादी शिराज़ी, गाइ डे मौपासेंट, मौरिस मैटरलिंक, और हेंड्रिक वैन लून |
| उपन्यास | जॉर्ज डब्ल्यू एम रेनॉल्ड्स द्वारा "द मिस्ट्रीज़ ऑफ़ द कोर्ट ऑफ़ लंदन" [5] |
| दार्शनिक | स्वामी विवेकानंद |
| भारतीय स्वतंत्रता सेनानी | महात्मा गांधी , गोपाल कृष्ण गोखले, और बाल गंगाधर तिलक |
