शरीरों की चिताओं पर लगेंगे हर बरसनेवाले वीर योद्धाओं का यही बाकी निशां होगा। नमस्कार, स्वागत है आप सभी का नारा टीवी पर। भारत ने अंग्रेजों से आजादी पाने के लिए हर संभाव कोशिश की है। लाखों वीर सपूतों ने अपने प्राणों की आहुति दी और देश को आजादी दिलाई। ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ जंग और आजादी के लिए जागरूक होने के बाद, हिंदोस्तान 15 अगस्त 1947 की आधी रात को अंग्रेजों की दासता से मुक्त हुआ। इसके बाद, लंबे समय से बंदिशों में बंद हुआ भारती समाज ने स्वतंत्रता का सुखद अहसास किया।
हर कोई आजादी के मार्गदर्शकों को याद कर रहा था, जिनके बलिदानों से भारतीयों को मुक्ति मिली थी। आज हम इस श्रृंखला के पहले वीडियो में नरसीमह रेड्डी की कहानी पर ध्यान केंद्रित करेंगे। वही नरसीमह रेड्डी जिनके जीवन पर आधारित एक फिल्म आने वाली है, जिसमें चिरंजीवी और हेमा मालिनी भी हैं।
नरसीमह रेड्डी पहले कांडीकारी थे, जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह किया। फिल्म में इसका विवरण 2 अक्टूबर को होगा। इस एपिसोड के माध्यम से हम नरसीम मारेड्डी की असली कहानी को जानेंगे।
1857 में, बैरकपुर में मंगल पांडे ने गोली चलाई और भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम का आरंभ किया। पहली स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत से बहुत साल पहले, एक सेनानी ने अंग्रेजों के साथ खूनी युद्ध में भाग लिया था। उसकी वीरता ने अंग्रेजों को इतना डराया कि उन्होंने उसका सिर तीस साल तक किले पर लटका कर रखा।
इस योद्धा ने अपने राज्य को स्वतंत्रता दिलाई, लेकिन कई राजाओं ने अंग्रेजों की आधिकारिक शासन स्वीकृति कर ली। मद्रास के एक घटना में, अंग्रेजों ने रायतवारी लगान में विशेषज्ञता दिखाई और भारी लगान से किसानों को भूखमरी का सामना करना पड़ा।
नरसीमह रेड्डी, जो एक राजा के पोते थे, ने अपने राज्य को अंग्रेजों से आजाद करने का निर्णय लिया। उन्होंने अंग्रेजों के साथ युद्ध किया और उनकी खजाना लूटी, जिससे गरीबों को भूखमरी से राहत मिली।
लेकिन एक दुखद घटना के बाद, नरसीमह रेड्डी को गिरफ्तार किया गया और उसे फांसी पर लटका दिया गया। वह 30 सालों तक अपने सर को किले में लटका कर रखा गया, लेकिन उनकी वीरता ने लोगों में क्रांति की भावना को जागृत किया।
15 अगस्त 1947 को, उसी वीर सपूत की कड़ी मेहनत और बलिदान के बाद, हमें अंग्रेजों की दासता से मुक्ति मिली। इस अद्भुत योद्धा को साथ साथ नमन।
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| जीवन परिचय | |
|---|---|
| वास्तविक नाम | उय्यलावडा नरसिम्हा रेड्डी |
| व्यवसाय | स्थानीय शासक, स्वतंत्रता सेनानी |
| व्यक्तिगत जीवन | |
| जन्मतिथि | 1805 |
| जन्मस्थान | उय्यालवाड़ा, जिला कुर्नूल, आंध्र प्रदेश, भारत |
| मृत्यु तिथि | 22 फ़रवरी 1847 |
| मृत्यु स्थल | जिला कुरनूल, कोइलकुंटला, आंध्र प्रदेश |
| मृत्यु का कारण | फांसी |
| आयु (मृत्यु के समय) | 42 वर्ष |
| गृहनगर/राज्य | उय्यालवाड़ा, जिला कुर्नूल, आंध्र प्रदेश, भारत |
| शैक्षिक योग्यता | ज्ञात नहीं |
| परिवार | दादा - जयारामी रेड्डी पिता - उय्यलावडा पेडडामल्ला रेड्डी माता - नाम ज्ञात नहीं भाई - 2 (नाम ज्ञात नहीं) |
| शौक/अभिरुचि | घुड़सवारी, तलवारबाजी, तैरना |
| प्रेम संबन्ध एवं अन्य जानकारियां | |
| वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
| पत्नी | सिद्दम्मा, पेरम्मा, ओबुलम्मा |
| बच्चे | बेटा - डोरा सुब्बैयह, 2 अन्य (नाम ज्ञात नहीं) बेटी - 1 (नाम ज्ञात नहीं) |
