हम पर तुम्हारा पर्वाह, मेरे हमसफ़र,
पंख तुम परवाज, हम जीवन का गीत हो,
तुम गीत का अंदाज, जन्म एक अगस्त सन उनिस्सो परतीस,
मीना कुमारी का जन्म हुआ था एक बहुत गरीब परिवार में।
इस वजह से बचपन से ही उन्हें फिल्मों में काम करना पड़ा।
एक बार मशहूर रही कि मीना कुमारी बचपन में रोती रही,
कि मुझे आक्टिंग नहीं करनी, मुझे स्कूल जाना है,
लेकिन परिवार की मानेयतें ऐसी थीं कि अगर वह काम नहीं करतीं,
तो परिवार का खर्च नहीं चलता। हम इन्तजार करेंगे,
हम इन्तजार करेंगे तेरा कयामत तक खुदा करे की खयामत हो और तो आए।
जब मीना कुमारी का जन्म हुआ था, तो उनके माता-पिता के पास इतने पैसे नहीं थे
कि वह डॉक्टर की फीस चुका सकें, इसलिए कुछ समय के लिए उन्हें एक अनाथालय में रख दिया गया था।
हालांकि इनके पिता भी कलाकार थे और पार्सी थिएटर से इनका गहरा नाता था।
पर इनका काम खास बड़ता नहीं था। जिन दिखने की रात आई,
शुरुआती दौर में इन्होंने धार्मिक फिल्मों में काम किया,
जैसे कि “वीर घटोत्कच” और “श्री गणेश महिमा”। धीरे-धीरे उनका बक्त आया,
जब उन्हें विजेभट की फिल्म “बैजु बावरा” में हीरोइन के रोल मिला,
और इनका काम बहुत सराहा गया।
सन 1953 में इन्हें बेस्ट आक्ट्रेस की अवार्ड से नवाजा गया था,
इसके बाद तो मीना कुमारी ने पलट के नहीं देखा। सन उनिस्सो तेरिपर में “परिनीता”,
उनिस्सो चपन में “एक ही रास्ता”, उनिस्सो सथावन में “शार्दा” और प्रीम पराई को कौन भूल सकता है,
और सन उनिस्सो बासट में “साहिब बीबी और गुलाम”। इस फिल्म ने मीना कुमारी को एक अलग ही उच्चाई पर ले जाकर बिठा दिया।
यह फिल्म रही “साहिब बीबी और गुलाम” जिया एक ओजीया में समाय,
गरोरे के मैं तनमन की सुदवुद गमा बैठी हर आहट पे समझे आए गयो रे,
जट घूँघट में मुखड़ा चुपा बैठी। यह फिल्म गुरुदत साहब ने बनाई थी
और मीना कुमारी ने इसमें छोटी बहुं का रोल निभाया था। वही चोटी बहू जिसे इस फिल्म के अंदर शराब की लट लग जाती है।
ये वो साल था ज़ा तीन फिल्मों के लिए मीना कुमारी को बेस्ट एक्ट्रेस के अवार्ड के लिए नॉमिनेट किया गया था,
यानी की किसी और हीरोइन का कोई चांस ही नहीं था। ये फिल्में थीं “आरती”, “मैं चुप रहूंगी” और “साहिब बीबी और गुलाम”।
दिखता है आपको नशे की लट लग चुकी है। ता? मुझे नशे की लट नहीं लगी जे, बलके… बलके क्या? मेरे स्वामी,
उन्ही के निजी जीवन की तरफ रुख करें, तो हमें पता चलता है कि सन उन्निस्सु बावन में,
मीना कुमारी को डारेक्टर कमाल अम्रोही से प्यार हो गया। कमाल साहब मीना जी से उम्र में पन्दरा साल बड़े थे,
और पहले से ही शादी शुदा थे। मीना कुमारी जो खुद एक शायरा रही,
उन्होंने कमाल अम्रोही के लिए ये शेर लिखे थे, “दिल सा जब साथी पाया, बेचैनी भी वो साथ लेंगे।”
और शादी के एकडम बाद सन उनिससो तिरिपन में फिल्म “दाइरा” बनाई गई,
जिसकी बुनियाद कमाल अमरोही और मीना कुमारी की जिंदगी थी।
और सन उनिससो चप्पन तक आते आते इन दोनों के रिश्ते में कड़वाहड़ बढ़ने लगी।
सन उनिससो चप्पन में फिल्म “पाकीजा” के शुरुवात हुई,
पर क्यूंकि मीना कुमारी और कमाल अमरोही के बीच दूरियां बढ़ रही थीं।
इस वजह से फिल्म “पाकीजा” को रोग दिया गया। बाद में सुनील दत साहब और नर्गिस दत ने इन दोनों से कहा कि
इतनी अच्छी फिल्म है इसे मत रोको और इस फिल्म को बनाओ। तब इन दोनों ने इस फिल्म में दुबारा काम शुरू किया।
इसी वजह से “पाकीजा” को सोला साल लगे पूरा होने में। कमाल अमरोही से अलग हो जाने के बाद मीना कुमारी शराब की लट में डूब गई
लोगों को ऐसा लगा कि साहब बीवी और गुलाम का वो चरितर जो वो निभा रही थी अब असल जिन्दगी में भी जी रही है।
इस बीच ये बातें भी रही कि मीना कुमारी साहब के प्रेम संबंद उस जमाने के नए एक्टर धर्मेंद के साथ रहे जो आगे जाकर एक सूपरस्तार बने।
आँखने शर्मा के कह दी, “दिल के शर्माने की बाल एक दीवाने ने सुन ली। भूजे दीवाने की बाल शार की तुम ही जहाँ है,
शार का वाद हम शार का वाद हम हमसफर मेरे हमसफर पंख तुम परवाज हूँ जिन्दगी का गीत हूँ तुम गीत का अंडाज हूँ।
मीना कुमारी जी की दोस्ती गुलजार साहब के साथ भी खुब रही और मीना जी के गुदर जाने के बाद गुलजार साहब ने एक किताब पब्लिश की जिसमें मीना कुमारी की शायरी थी।
धीरे धीरे अकेले पन ने मीना कुमारी को इस कदर घेरा लिया कि वो असल ज़िन्दगी में भी ट्राजज़िडी क्वीन बन गईं।
शराब उनके शरीर को तोड़ रही थी और प्यार उनके दिल को इन ही लमों में मीना कुमारी ने कहा था, “तुम क्या करोगे सुनकर,
मुझसे मेरी कहानी बेलुत्व जिन्दगी के किस्से हैं फीके फीके। और जब मीना कुमारी ने कमाल अम्रोही से तलाक लिया तब इस संजीदा अभिनेत्री ने कहा था,
“तलाक तो दे रहे हो, नजरे कहर के साथ, जवाने भी मेरी लोटा दो, महर के साथ। दुनिया करे सवाल तो हम, क्या जवाब दे,
तुमको नहो खयाल, तो हम, क्या जवाब दें। सन विनिस्सो एकाटर में बिमार हालत में ही गुलजार साहब की फिल्म “मेरे अपने” में ये नजर आईं,
एक अलग ही भूमिका करती हुई। सन विनिस्सो बहतर तक इनकी तब्यत इतनी खराब हो चुकी थी कि बचने की उमीद तक्रीबन ख़त्म हो गई थी।
पर जैसे तैसे फिल्म “पाकीजा” को रिलीज के 3 हफ्ते बाद ही इनकी तब्यत इतनी खराब हुई कि इन्हें हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़ा
और 31 मार्च सन उनिस्सो चप्पन को उनकी उम्र केवल 39 वर्ष की उम्र में ही जाना पड़ा।
कमाल अमरोही ने शादी के बाद अपनी तब्यत के बारे में बताते हुए कहा था, “मेरी ज़िन्दगी में मीना कुमारी एक राजवंश की तरह है।
उसने जो कुछ किया, वह इतिहास में एक दिन चरितार्थ किया जाएगा।” अगर उनकी बातों को सही धारा से देखा जाये तो मीना कुमारी का नाम सदियों तक ज़िन्दगी में रहेगा।
| Meena Kumari | |
|---|---|
| वास्तविक नाम | महजबीं बानो |
| उपनाम | मीना कुमारी, ट्रैजेडी क्वीन |
| व्यवसाय | अभिनेत्री, गायिका, कवयित्री, परिधान डिजाइनर |
| व्यक्तिगत जीवन | |
| जन्मतिथि | 1 अगस्त 1932 |
| जन्मस्थान | दादर पूर्व, बॉम्बे, ब्रिटिश भारत (वर्तमान-मुंबई, भारत) |
| मृत्युतिथि | 31 मार्च 1972 |
| मृत्यु स्थान | मुंबई, महाराष्ट्र, भारत |
| आयु (मृत्यु के समय) | 39 वर्ष |
| मृत्यु कारण | लीवर सिरोसिस |
| राशि | सिंह |
| हस्ताक्षर | मीना कुमारी हस्ताक्षर |
| राष्ट्रीयता | भारतीय |
| गृहनगर | दादर पूर्व, बॉम्बे, ब्रिटिश भारत (वर्तमान-मुंबई, भारत) |
| डेब्यू | फिल्म (अभिनेत्री) - फिल्म - फ़रज़न्दे (1939) मीना कुमारी फिल्म - फ़रज़न्दे (1939) में पार्श्व गायिका के रूप में - फिल्म - सिस्टर/बहन (1945) मीना कुमारी पार्श्व गायिका के रूप में फिल्म - सिस्टर/बहन (1945) |
| पुरस्कार | • वर्ष 1966 में, उन्हें फिल्म काजल के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के रूप में फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। मीना कुमारी फिल्मफेयर पुरस्कार के साथ • वर्ष 1966 में, उन्हें फिल्म काजल में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के रूप में फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। • मीना कुमारी को बंगाल फिल्म पत्रकार एसोसिएशन पुरस्कार (बीएफजेए) से भी सम्मानित किया गया। • मीना कुमारी एकमात्र ऐसी अभिनेत्री थीं, जिन्होंने लगातार 13 वर्ष तक सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फिल्मफेयर ख़िताब को अपने नाम किया था, लेकिन वर्ष 1979 में नूतन ने फिल्मफेयर के ख़िताब को अपने नाम कर रिकॉर्ड को तोड़ दिया। |
| परिवार | पिता - अली बक्श (रंगमंच कलाकार और संगीतकार) मीना कुमारी अपने पिता के साथ माता - प्रभावती देवी उर्फ़ इकबाल बानो (नृत्यांगना) मीना कुमारी की माँ भाई - कोई नहीं बहन - खुर्शीद बानो (बड़ी), मधु (छोटी) मीना कुमारी अपनी बहनों के साथ |
| धर्म | इस्लाम |
| शौक/अभिरुचि | नृत्य करना और गायन करना |
| विवाद | मीना कुमारी ने भी तीन तलाक और हलाला जैसी प्रथाओं का सामना किया। जिसके तहत उनके पति फिल्म पाकीजा के निर्देशक कमाल अमरोही ने गुस्से में मीना कुमारी को तीन बार तलाक कहा और उनका तलाक हो गया। बाद में कमाल अमरोही को अपने किए का पछतावा हुआ तो उन्होंने मीना कुमारी से दोबारा निकाह करना चाहा, लेकिन इस्लाम धर्म गुरुओं ने निकाह नहीं होने दिया और मीना को "हलाला" प्रथा को अपनाने को कहा। जिससे कमाल अमरोही ने उनका निकाह अमान उल्ला खान (जीनत के पिता) से करवाया। अपने नए पति से तलाक मिलने के बाद मीना कुमारी ने कमाल अमरोही से निकाह किया। जिससे मीना कुमारी को कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। |
| पसंदीदा चीजें | |
| पसंदीदा लेखक | गुलजार |
| पसंदीदा अभिनेता | धर्मेंद्र |
| प्रेम संबन्ध एवं अन्य जानकारियां | |
| वैवाहिक स्थिति | विवाहित |
| बॉयफ्रैंड्स एवं अन्य मामले | गुलजार (पटकथा लेखक) मीना कुमारी गुलजार के साथ धर्मेंद्र (अभिनेता) मीना कुमारी धर्मेंद्र के साथ कमाल अमरोही (निर्देशक) |
| पति | कमाल अमरोही (निर्देशक) मीना अपने पति कमाल अमरोही के साथ |
| विवाह तिथि | 14 फरवरी 1952 |
| बच्चे | कोई नहीं |
