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महर्षि वाल्मीकि

महर्षि वाल्मीकिमहर्षि वाल्मीकि { Maharishi Valmiki } जी आदि काल के सब से प्रथम कावि माने गाए है । उन्हें आदि कावि भी कहा जाता है । महाऋषि वाल्मीकि जी ने ही रामायन काव्य की रचना की । आदिकवि श्रीमद वाल्मीकि रामायण जगत की सर्वप्रथम काव्य रचना मानी जाती है । महाऋषि वाल्मीकि जी खगोल विद्या और ज्योतिष शास्त्र के महा ज्ञानी थे । इसके इलावा भगवान राम के दोनों पुत्रों लव और कुश का पालन पोषण भी महाऋषि वाल्मीकि जी के नेतृत्व में ही हुआ था । महाऋषि वाल्मीकि जी के बारे में एक और कथा है के इन्होंने ही तुलसीदास जी के रुप मे पुनर जन्म लेकर पवित्र ग्रथं रामचरित मानस की भी रचना की थी । जिसे आज हर घर मे बड़ी ही श्रद्धा और प्रेम से पूजा जाता है ।

महर्षि वाल्मीकि

Early Life and Family { महर्षि वाल्मीकि प्ररंभिक जीवन और परिवार }

महर्षि वाल्मीकि जी के जन्म के बारे में धारणा है के उनका जन्म अज्मव की सर्द पूर्णिमा के दिन हुआ था । महाऋषि वाल्मीकि जी महाऋषि करप्य और माता अदिति के नोंवे पुत्र प्रचेता के पुत्र थे । वाल्मीकि जी की माता का नाम चर्ष्णि और भाई का नाम भृगु था । वाल्मीकि जी के बचपन के बारे में कथा हैं के जब वह छोटे थे तो उन्हें एक भील उठा कर ले गया था । ( भील : अनुशुचित जाती का व्यक्ति ) जिस वजह से उनका लालन-पालन भील जाति में ही हुआ और इनका नाम रत्नाकर पड़ गया ।

महर्षि वाल्मीकि जी का डाकू बनना

भील जाति में पलने की वजह से रत्नाकर { महाऋषि वाल्मीकि } बड़ा होकर एक शिकारी बना । वह अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए प्रति दिन शिकार किया करता । परंतु धीरे-धीरे शिकार कम होने लगा । जिस वजह से परिवार का पालन-पोषण करना रत्नाकर { महाऋषि वाल्मीकि } के लिए बहुत कठिन हो गया था । फिर एक दिन रत्नाकर को मज़बूरन एक राहगीर को लूटना पड़ा । रत्नाकर को उस राहगीर से काफ़ी धन और जेवर मिल गए थे । जिस के बाद रत्नाकर ने लूट कर धन कमाना ही उचित समझा और वह एक डाकू बन गए |

To become a sage from dacoit Ratnakar { डाकू रत्नाकर से एक ऋषि बनना }

एक दिन ऐसे ही जब रत्नाकर रोज़ की तरह किसी को लूटने जा रहे थे तो उनकी भेंट नारद मुनि जी से हुई । रत्नाकर ने जैसे ही नारद मुनि जी को लूटने की कोशिश की तो नारद मुनि जी ने उन्हें रोकते हुए कहा के तुम जे सब काम क्यों करते हो जे तो पाप हैं । तब रत्नाकर ने नारद मुनि को जवाब दिया के मैं जे सब अपने परिवार के लिए करता हूँ । तब नारद मुनि जी ने रत्नाकर से पूछा के क्या तुम्हारा परिवार भी इस पाप में तुम्हारा भागीदार है । तो रत्नाकर ने कहा के हां अगर मेरा परिवार मेरे सुख में मेरा भागीदार है तो मेरे पापो में क्यों नहीं । तबी नारद मुनि जी ने कहा के जे बात तुमने अपने परिवार से पूछी है क्या ? तब रत्नाकर ने कहा के में अभी अपने परिवार से इस बारे में पुछुगा ।

जब रत्नाकर ने घर जा कर अपने परिवार से कहा के में लोगो को लूट कर धन इकठ्ठा करता हूँ, जिस से हमारा पूरा परिवार अन्न ग्रहण करता है । जे एक पाप है ,क्या तुम सब मेरे पाप में भागीदार हो ? तब रत्नाकर के पूरे परिवार ने उसे साफ़ मना कर दिया । रत्नाकर के पिता ने उन्हें कहा के मैंने तुम्हें शिकार करके पेट भरना सिखाया था ना के किसी का घर उजाड़ कर ।

रत्नाकर को इन बातों से बहुत ठेस पहुँची । जिस के बाद रत्नाकर ने नारद मुनि जी से माफ़ी माँगी और उन्हें अपना सही मार्ग दर्शन करने की प्राथना की । नारद मुनि जी ने रत्नाकर को कहा के अगर तुम भगवान राम के नाम का जाप करोगे तो तुम्हारे सभी पापो का निवारण हो जाएगा । जिसके बाद रत्नाकर ने एक ऋषि का भेष धारण किया और भगवान राम के नाम को जपना आरंभ कर दिया ।

Name Valmiki { वाल्मीकि नाम का मिलना }

जब रत्नाकर भगवान राम की भगति में कई वर्षों तक लीन रहा तो उनके चारो और दीमकों ने अपनी बांबी बना ली थी । जिस वजह से उन्हें सब वाल्मीकि कहने लगे और जब वह इस बांबी को तोड़कर बाहर आए तो सभी ने उहने बाल्मीकि का नाम ही दिया ।

Creation of Ramayan { महर्षि वाल्मीकि रामायण की रचना }

भगवान राम की अटूट भगति में लीन रहने के कारण भगवान ब्रह्मा जी वाल्मीकि जी से अत्ति प्रश्न हुए । ब्रह्मा जी ने बाल्मीकि जी को फ़ल स्वरूप दिव्य दृष्टि प्रदान की और उन्होंने वाल्मीकि जी को रामायण की रचना करने के लिए प्रेरित किया । महाऋषि वाल्मीकि जी भगवान राम के बहुत बड़े भगत थे । इसके इलावा वह स्वयं रामायण काल के थे जिस वजह से सब उनकी रचित रामायण काव्य को बिल्कुल सत्य मानते है । वाल्मीकि जी ने रामायण काव्य संस्कृत भाषा मे रचि और रामायण क्वाय में कुल 24000 श्लोक दर्ज कर उसे पूरा किया |

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