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शहीद भगत सिंह

शहीद भगत सिंह भारत देश के एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी हुए है, जिन्होने अपने देश और लोगो की आज़ादी के लिए अपनी जान तक की भी प्रवाह नहीं की | भगत सिंह का अपने जीवन में केवल एक ही सपना था और वो अपने देश की आज़ादी, उन्होने बचपन से ही अपने जीवन को देश के नाम कर दिया था | 24 वर्ष के इस नौजवान का कहना था के मेरा देश ही मेरी दुल्हन है | जिस वजह से उन्होने शादी भी नहीं की थी |

भगत सिंह ने अपने देश की आज़ादी के लिए कई क्रांतिकारी गतिविधियों में अपना पूर्ण योगदान दिया |

भगत सिंह महात्मा गाँधी का बहुत आदर करते थे और देश की आज़ादी के लिए पूर्ण रूप से महात्मा गाँधी जी के अहसंयोग आंदोलन से जुड़े हुए थे | अहसंयोग आंदोलन के तहत महात्मा गाँधी जी का कहना था के हमे ब्रिटिश सरकार की सभी वस्तुओ, कपड़ा, नौकरियां और विद्या का भी त्याग करना है | भगत सिंह ने गाँधी जी के इस आंदोलन में योगदान के लिए अपनी पढ़ाई तक भी छोड़ दी और ब्रिटिश सरकार की पुस्तके भी जला दी थी |

सभी को विश्वास था के अब जल्दी ही आजादी मिल जाएगी | परन्तु चोरा-चोरी में हुए हत्याकांड के बाद गाँधी जी ने 1921 में अहसांयोग आंदोलन को वापस ले लिया, तो भगत सिंह बिलकुल अंदर से टूट चुके थे ,तब उन्होने फैसला किया के अगर आज़ादी चाहिए तो खुद ही कुछ करना होगा | तब वो चन्दरशेखर आजाद और कई क्रांतिकारियों के साथ मिल गए | भगत सिंह ने देश की आज़ादी के लिए हिंसा का मार्ग अपनाया |

Early life and Family { प्रारंभिक जीवन और परिवार }

भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा गांव,पंजाब अब { पाकिस्तान } में हुआ | अब इस गांव का नाम बदल कर शहीद भगत सिंह नगर कर दिया गया है | भगत सिंह बचपन से ही बहुत दलेर और जोशीले थे | वह इतने बहादुर थे के बचपन में उनके बड़ी उम्र के बच्चे भी उनसे डरा करते थे |

भगत सिंह के पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का विद्यवती कौर था | भगत सिंह का पूरा परिवार पहले से ही देश की आज़ादी के लिए सवतंत्रता संग्राम का हिस्सा था | भगत सिंह के जन्म के समय उनके दोनों चाचा जी अजीत सिंह और सवरण सिंह जेल से रिहा हो कर आए थे | भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह जी भारतीय ग़दर पार्टी के सदस्य थे | ग़दर पार्टी की स्थापना सरदार सोहन सिंह भकना जी दोवारा 1913 में अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में हुई थी | ग़दर पार्टी का उदेश्य ब्रिटिश साम्राज्य को जड़ से ख़तम कर के देश को आज़ाद करवाना था |

परिवार का देश की आज़ादी के प्रति विवहार का भगत सिंह पर बहुत गहरा असर पड़ा | इस लिए भगत सिंह ने बचपन में ही देश को अंग्रेजी हकूमत से आज़ाद करने का द्रढ़ निष्चय कर लिया था |

Shaheed Bhagat Singh revolution and first step { शहीद भगत सिंह का क्रांति की और पहला कदम }
Jallianwala Bagh Massacre { जलियावाला बाग़ हत्याकांड }

जलियांवाला बाग़ हत्याकांड बिशाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को हुआ था | उस दिन बाग़ में बहुत भीड़ थी और वही पर कुछ भारतीय ब्रिटिश सरकार के रोलेट एकट का बिरोध करने के लिए भी एकत्रित हुए थे | भारतीय दोवारा किये जाने वाले इकठ्ठ के बारे में खबर पा कर जनरल डायर अपने सिपाहीओ को लेकर सीधा जलियांवाला बाग़ पहुंच गया और 1650 राउंड फियरिंग अँधा धुंध बिना किसे वार्निंग के करवा दी | ये फायरिंग लगभग 10 मिंट तक चली और हजारो भारतीयों का खून वह गया |

इस घटना का भगत सिंह के मन पर बहुत गहरा असर पडा | जब भगत सिंह को इस घटना के वारे में पता चला तो वो 20 किलोमीटर पैदल चल कर जलियांवाला बाग़ पहुँच गए | भगत सिंह वहा खून से लदी रेत देख कर दंग रह गए | भगत सिंह ने उस रेत को सीसी में भरा और वही से अपने देश के लोगो की मौत का बदला लेने और देश को आज़ाद करवाने का प्रण ले लिया | तब भगत सिंह की आयु केवल 12 वर्ष की थी |

लाला लाजपत राय की मौत का बदला { Revenge of Lala Lajpat Rai’s death }

लाला लाजपत राय को भगत सिंह अपने पिता के समान माना करते थे , और उनका बहुत आदर किया करते थे |

परन्तु भगत सिंह और लाला लाजपत राय की विचारधारा में जमीन आसमान का फर्क था | लाला लाजपत राय जी नरम दल के थे और भगत सिंह गर्म दल के थे | लाला जी बिना लड़ाई झगड़े के केवल नारेवाजी से ब्रिटिश सरकार को झुकाना चाहते थे | वह पूर्ण अहिंसावादी थे |

लाला जी 1928 लाहौर में साईमन के खिलाफ नारेवाजी में लाठी चार्ज के दौरान बहुत घायल हु गए थे | उन्हें तुरंत हस्पताल में लाया गया | पर वह बच नहीं पाए | लाला लाजपत राय जी ने आखरी वार कहा के ” मेरी मौत ब्रिटिश सरकार के ताबूत पे आखरी कील साबित होगी ” |

लाला जी की मौत ने भगत सिंह , राजगुरु चन्दरशेखर आज़ाद और जयगोपाल को बहुत आहत किया | उन्होने लाला जी की मौत का बदला जेम स्कॉट से लेने की योजना बनाई | स्कॉट को मरने के लिए चारो ने लाहौर कोतवाली के सामने डेरा जमा लिया और स्कॉट का इंतजार करने लगे | पर उन्होने स्कॉट की जगा गलती से सांडर्स की हत्या कर दी , इसी घटन के दौरान भाग दौड़ में चन्दरशेखर आज़ाद ने एक थानेदार चनन सिंह को गोली मार दी जो के उनका पीछा कर रहा था और तुरंत वहा के D.A.V. स्कूल के पीछे के रस्ते से सभी भाग गए |

अगली सुबह भगत सिंह , राजगुरु , जयगोपाल और चन्दरशेखर आज़ाद ने पर्चे बना कर वांट दिए के हमने लाला लाजपत राय जी का बदला सांडर्स की हत्या से ले लिया है |

Conflict of Public Safety Bill and Trade Dispute Bill { पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल का बिरोध }

8 अप्रैल 1928 को भारत में 2 बिल पास किए गए थे , पब्लिक सेफ्टी बिल { Public safty bill } और ट्रेड डिस्प्यूट बिल {Trade dispute bill } | दोनों बिल ही भारत के हित में नहीं थे |

Public safty bill { पब्लिक सेफ्टी बिल } :

पब्लिक सेफ्टी बिल ब्रिटिश सरकार ने पब्लिक की सुरक्षा के लिए पास किया था , परंतु ये भारतीयों के लिए बिलकुल भी अच्छा साबित नहीं हुआ | इस बिल के तहत ब्रिटिश सरकार किसी को भी शक के आधार पर गिरफ़्तार कर सकती थी | ब्रिटिश सरकार ने इस का प्रयोग भारतीयों दोवारा की जा रही क्रांतिकारी गतिबिधिओ को रोकने के लिए किया |

Trade dispute bill { ट्रेड डिस्प्यूट बिल } :

ब्रिटिश सरकार भारतीयों से 24-24 घंटे काम करवाया करती थी , बच्चे ,बूढ़े और औरतो से भी काम करवाया जाता था | ट्रेड डिस्प्यूट बिल के तहत कोई भी कर्मचारी ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज़ नहीं उठा सकता था और ना ही कोई मजदूर यूनियन बनाई जा सकती थी | भारतीयों को बिलकुल दवा लिया गया था |

इस अन्याय को रोकने के लिए और इसका बिरोध करने के लिए चन्दरशेकर आज़ाद ,भगत सिंह और उनके साथियो ने असेंबली में बम्ब फोड़ने की योजना बनाई | क्युकि उनका कहना था के बहरो को सुनाने के लिए धमाका जरूरी है | 6 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को इस योजना को अंजाम देने के लिए भेजा गया | पर उनका मक्सद केवल अंग्रेजो को अपना बिद्रोह प्रदर्शित करना था ना के किसी को चोट पहुंचाना |

इस लिए उन दोवारा फेके गए बॉम्ब लौ डेंसिटी के थे और बॉम्ब को असेंबली की खाली जग़ह में फेका गया था | बॉम्ब फेकने के बाद भगत सिंह , बटुकेश्वर दत्त ने इन्कलाब जिन्दाबाद के नारे लगाने शुरू कर दिए और पर्चे फेकने शुरू कर दिए जिन पे लिखा था ” वहरो को सुनाने के लिए धमाका जरूरी है ” | बॉम्ब फेकने के वाद वो चाहते तो भाग सकते थे पर उन्होंने अपनी मर्जी से अपनी गिरफ्तारी दी ताकि कोई उन्हें आतंकवादी ना समझे |

Shaheed Bhagat Singh in jail { जेल में शहीद भगत सिंह }

गिरफ्तारी के वाद भगत सिंह का जीवन जेल में काफी कठिन गुजरा | भगत सिंह लगभग 2 साल जेल में रहे | उनसे उनके साथियो का पता पूछने के लिए कई यातनाएं दी गई अथवा कई बड़े अफसरों दोवारा ये दिलासे भी दिए गए के अगर भगत सिंह अपने साथियो के वारे में और उनकी चल रही गतिबिधियो के वारे में बता दे तो उसे जेल से छोड़ दिया जाएगा | पर भगत सिंह नहीं माने |

इन सब के इलावा जेल में अंग्रेज कैदियों के मुकाबले भारतीय कैदियों के साथ बहुत बुरा स्लूक किया जा रहा था | भारतीय कैदियों का खाना जहां बनाया जा रहा था वहां कॉकरोच और चूहे दौड़ रहे होते थे और उनका खाना बाथरूम में पकाया जाता था | खाना बिलकुल भी खाने लायक नहीं होता था | भारतीय कैदियों को दिए जाने वाले कपड़े भी फ़टे पुराने और कई दिन के धुले नहीं होते थे | एक ही कमरे में कई कैदियों को रखा जाता था और पड़ने के लिए अख़बार अथवा पेन कॉपी का प्रबन्ध भी नहीं था |

भगत सिंह ने इन सब के खिलाफ आवाज़ उठाई | उन्होने कहा हम इंसान है हमारे साथ इंसानो जैसा विवहार किया जाये | हमे ढंग के कपड़े ,खाना और पड़ने लिखने के लिए किताब और पेन कॉपी दिए जाए | भगत सिंह ने कहा अगर हमे ढंग का खाना नहीं मिलेगा तो हम खाना नहीं खायेगे और उन्होने जेल में भूखहड़ताल कर दी | भगत सिंह और उनके साथियो को जेल में अंग्रेजों दोवारा बहुत मारा पीटा गया , उन्हें घंटों तक बर्फ़ पर लिटा कर रखा जाता और चाबुक से मारा जाता था | अंग्रेजों दोवारा उनकी भूखहड़ताल तुड़वाने के लिए उनके पानी की जगह दूध रख दिया जाता था तांकि उनकी भूखहड़ताल तुड़वाई जा सके | 64 दिन की भूखहड़ताल में एक क्रांतिकारी जतिंदरदास शहीद हो गए |

अंग्रेज कहते तुम पागल हो कुछ खाऊगे नहीं तो वैसे ही मर जाओगे तो भगत सिंह मुस्कराते और कहते :

मेरे सीने में जो जख्म है
वो तो फूल के गुच्छे है
हमे पागल रहने दो
हम पागल ही अच्छे है

आख़िर अंग्रेज सरकार को 64 दिन की भूखहड़ताल के वाद उनके आगे घुटने टेकने पड़े और सब सुबिधाएँ देनी पड़ी जो भगत सिंह ने माँगी थी |

23 मार्च 1931 { Hanging Day }{ फांसी का दिन }

लगभग 2 साल की कैद के वाद भगत सिंह ,राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च 1931 को फांसी दे देने की सजा सुना दी गई | देश में रोश न फैले इस लिए अंग्रेज सरकार ने उन्हें 24 मार्च की जगह 23 मार्च की साम को ही फांसी दे दी |

फांसी के वाद भारतीयों दोवारा कोई आंदोलन न भड़क जाए इसके डर से अंग्रेज सरकार ने भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव के शरीर के कुल्हाड़ी से टुकड़े कर बोरी में भर लिए और जेल की पीछे की दिवार तोड़ कर इनके मृत्तक शरीर को फ़िरोज़पुर लिजाया गया और मिटी का तेल डाल कर जलाने लगे | आग जलते देख गांव के लोग उनकी और बढ़ने लगे लोगो के डर से अंग्रेजो ने उनके अधजले शरीर को सतलुज नदी में फेक दिया और भाग गए |

गांव के लोगो दोवारा भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव के मृत्तक शवों को नदी से निकाला गया और बिधि पूर्वक उनका अंतिम संस्कार किया गया |

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