श्री गुरु अमर दास जी { Sri Guru Amar Das Ji } सिक्खों के तीसरे गुरु हुए थे । श्री गुरु अंगद देव जी ने इन्हें गुरु की उपाधि दी। श्री गुरु अमर दास जी बहुत ही विद्वान और दयावान थे । गुरु बनने के बाद इन्होंने अपने गुरुओं द्वारा दिए ज्ञान का विस्तार किया । इन्होंने बहुत सारे समाज भलाई के कार्य भी किए। इन्होंने विशेषता लंगर प्रथा पर ध्यान दिया । इनका सभी को सीधा आदेश था के जो भी मेरे दर्शन करना चाहता है वो पहले सभी के साथ बैठकर लंगर खायेगा। इससे वह जातिवाद, भेदभाव और छुआ-छूत को मिटाना चाहते थे ।
गुरु जी ने महिलाओं और पुरषो की शिक्षा को बढ़ावा दिया । उन्होंने महिलाओं की दशा पर विशेष ध्यान दिया । गुरु जी ने सत्ती प्रथा और घूंघट जैसे रिवाजो के खिलाफ़ आवाज़ उठा कर महिलाओं को इन रिवाजों से आज़ादी दिलाई । गुरु जी की संगत में सभी महिलाएं बिना घूंघट के आया करती थी । महाराज अकबर भी गुरु जी से बड़े-बड़े मसलो पर सलाह लिया करते थे । इन्होंने सिक्खी का बहुत विस्तार किया । गुरु अमर दास जी के कुल 907 भजन कीरतन ” श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी ” मे माजूद है । बहुत सारे हिन्दू और मुसलमानों ने गुरु जी से सिक्खी प्राप्त की ।
S.NO | NAME | YEAR |
1. | Sri Guru Nanak Dev Ji | 1469-1539 |
2. | Sri Guru Angad Dev Ji | 1504-1552 |
3. | Sri Guru Amar Das Ji | 1479-1574 |
4. | Sri Guru Ram Das Ji | 1534-1581 |
5. | Sri Guru Arjan Dev Ji | 1563-1606 |
6. | Sri Guru Hargobind Ji | 1595-1644 |
7. | Sri Guru Har Rai Ji | 1630-1661 |
8. | Sri Guru Harkrishan Ji | 1656-1664 |
9. | Sri Guru Teg Bahadur Ji | 1621-1675 |
10. | Sri Guru Gobind Singh Ji | 1666-1708 |
प्ररंभिक जीवन और परिवार { Early Life and Family }
श्री गुरु अमर दास जी का जन्म 5 अप्रैल 1479 को गांव ” बासरका , अमृतसर ” में हुआ । इनके पिता भाई तेज भान पेशे से एक व्यापारी थे और इनकी माता का नाम माता लक्ष्मी था । गुरु जी एक हिन्दू परिवार से थे और सभी तरह के रीती रिवाज माना करते थे । वह भगवान “श्री कृष्ण” के परम भगत थे ।
श्री गुरु अमर दास जी का विवाह { Marriage of Sri Guru Amar Das Ji }
गुरु जी का विवाह 25 वर्ष की आयु में मानसा देवी नाम की बालिका से कर दिया गया था। इनके दो पुत्र और दो पुत्रिया थी । पुत्र मोहन और मोहरी ,पुत्रिया बीबी दानी और बीबी भानी जी।
गुरु की खोज { Search for master }
एक बार गुरु राम दास जी गंगा की यात्रा कर जब वापस लोट रहे थे , तो उनका मिलाप एक साधु से हो गया । गुरु जी बहुत दयावान थे । उन्होंने साधु की बहुत सेवा की उनके लिए भोजन का प्रबंध किया और वापस लौटने तक गुरु जी ने साधु की बहुत सेवा की । साधु गुरु जी की सेवा से बहुत प्रशनन हुआ । साधु ने गुरु जी से प्रश्न किया के तुम इतने नेक और दयावान हो तुम्हारा गुरु कौन है ? गुरु जी ने बताया के मेरा कोई गुरु नही है जिससे वह साधु गुरु जी पर गुस्सा हो गया । साधु ने कहा के बिना गुरु वाले व्यक्ति से भोजन ग्रहण कर मेरे सभी व्रत भंग हो गए और साधु वहा से चला गया ।
साधु की बातों से गुरु जी को बहुत ठेस पहुंची , जिसके बाद उन्होंने गुरु की प्राप्ती के बारे में सोचा और एक दिन जब घर मे गुरु जी के बड़े भाई की पत्नी बीबी अमरो जी “श्री गुरु अंगद देव जी” के भजन कीरतन कर रही थी तो अमर दास जी उसे सुनकर बहुत प्रभावित हुए । उन्होंने सोचा जिस गुरु की बानी इतनी सुरीली है उस गुरु से तो मिलना ही चाहिए । तब बीबी अमरो जी अमर दास जी को श्री गुरु अंगद देव जी के दर्शन के लिए लेकर गई । अमर दास जी श्री गुरु अंगद देव जी के विचारों से बहुत प्रभावित हुए और उन्होने श्री गुरु अंगद देव जी को अपना गुरु मान लिया ।
श्री गुरु अमर दास जी का गुरु बनना { To become Guru of Sri Guru Amar Das Ji }
अमर दास जी ने श्री गुरु अंगद देव जी की बहुत सेवा की । अमर दास जी की आयु गुरु अंगद देव जी से ज्यादा थी और अमर दास जी बृद्ध भी थे परन्तु गुरु के प्रति श्रद्धा और प्रेम में उन्हेंने कभी कमी नही आने दी । अमर दास जी प्रतिदिन गुरु अंगद देव जी के लिए भोजन बनाया करते ,उनके पैर दबाते ,रोज सुबह पहले खुद सनान करते और उसके बाद गुरु जी के सनान के लिए पानी का प्रबंध करते ।
श्री गुरु अंगद देव जी अमर दास की सेवा से बहुत खुश थे । गुरु जी ने पहले ही निच्छित कर लिया था के मेरा उत्तराधिकारी अमर दास ही बनेगा । फिर 26 मार्च 1552 को गुरु अंगद देव जी ने अमर दास को गुरु की उपाधि दे दी । इसके बाद अमर दास , ” श्री गुरु अमर दास जी ” कहलवाने । जब अमर दास जी गुरु बने तब उनकी आयु 73 वर्ष की थी और श्री गुरु अंगद देव जी की आयु 36 साल थी।
श्री गुरु अमर दस जी का तख़्त छोड़ना { To relinquish the throne of Shri Guru Amardas Ji }
जब गुरु अंगद देव जी ने गुरु अमर दास जी को गुरु नियुक्त किया तो गुरु अंगद देव जी के पुत्रों ने उनका विरोध करना शुरू कर दिया । वह चाहते थे के गुरु उनमे से किसी एक को बनाया जाए क्योंकि वह गुरु अंगद देव जी के पुत्र थे । परन्तु संगतों ने गुरु अमर दास जी को ही गुरु माना । जब एक वार गुरु अमर दास जी अपने तख्त पर बैठ कर संगतों का मार्ग दर्शन कर रहे थे तो गुरु अंगद देव जी के पुत्र दातु ने उन्हें आकर लात से मारा और गुरु अमर दास जी अपने तख्त से नीचे गिर गए । पर गुरु जी ने दातु को बड़ी निम्रता से जवाब दिया । वह भाई दातु के पैर दवाने लगे और कहने लगे के मुझ बूढ़े का शरीर कठोर है और तुम्हारे पैर कोमल है कहि तुम्हें चोट तो नही लगी ।
भाई दातु ने गुरु जी के इस विवहार के कारण खुद को उनपर हावी समजा और ज़बरन तख़्त हड़प लिया । पर किसी ने भी भाई दातु को गुरु नही माना । इसके बाद गुरु अमर दास जी भी अपना तख़्त छोड़ कर वापस अपने गांव बासरका लौट आए और अपने घर मे ही रहने लगे । पर सभी संगतें अपने गुरु को ढोंढ रही थी और फिर ” बाबा बूढ़ा जी ” के कहने पर श्री गुरु अमर दास जी ने द्वारा संगतों का मार्गदर्शन किया और उन्हें ज्ञान बांटा।
मंजी और पीरी की स्थापना { Establishment of Manji and Piri }
गुरु अमर दास जी ने सिक्ख धर्म के प्रसार के लिए पूरे खेत्र को 22 हिस्सो में बांट दिया और हर खेत्र में सिक्खी के प्रसार के लिए सिक्ख नियुक्त कर दिए । गुरु जी ने इस कार्य के लिए जो पुरुष चुने उन्हें मंजी और जो महिलाएं चुनी उन्हें पीरी कह कर सम्भोधित किया । गुरु जी ने 94 पुरुष और 52 महिलाएं नियुक्त की थी ।
श्री गुरु अमर दास जी का आखिरी समय { The last time of Sri Guru Amar Das Ji }
गुरु जी 1 सितंबर 1574 को जोति जोत समा गए । परंतु श्री गुरु अमर दास जी ने दुनिया छोड़ने से पहले अपने जवाई भाई जेठा जी को अगले गुरु की उपाधि दी । भाई जेठा जी श्री गुरु अमर दास जी की पुत्री बीबी भानी जी के पती थे । गुरु अमर दास जी के बाद वह सिक्खों के चोथे गुरु बने ।
सिक्ख धर्म क्या है ? { What is Sikhism? }
सिक्ख धर्म की स्थापना श्री गुरु नानक देव जी द्वारा की गई थी । जब गुरु नानक देव जी बेई नदी से स्नान कर वापस लौट रहे थे तो उनके मुक्ख से यह वचन निकला के “ना कोई हिन्दू ,ना कोई मुस्लिम” गुरु नानक देव जी ने सभी को एक कर दिया । परंतु जब उनके भगतों ने पूछा के गुरु जी ना हम हिन्दू है और ना मुस्लिम तो हम कोन है । तो गुरु जी ने उन्हें “सिक्ख” का नाम दिया ।
गुरु जी ने कहा के आज से आप एक सिक्ख है जो किरत कर सबमे बाँटकर खाएगा और वाहेगुरु का नाम सिमरन करेगा ।
लंगर की प्रथा भी श्री गुरु नानक देव जी द्वारा ही चलाई गई थी । जिसका मुख्य कारण जातिवाद को खत्म करना और बेसहारो का पेट भरना था। लंगर में सभी ऊच्च और नीच जाति के लोग एक साथ बैठकर बिना किसी भेदभाव के भोजन खा सकते है । आज भी यह प्रथा सभी सिक्खों द्वारा बड़ी श्रद्धा से निभाई जाती है ।
आज सिक्ख धर्म दुनिया का 5वा सबसे बड़ा धर्म है । यहाँ पर सिक्खों के धर्म ग्रन्थ “श्री गुरु ग्रंथ साहिब” को रखा जाता है ,उस स्थान को गुरुद्वारा कहा जाता है । गुरुद्वारे के प्रमुख चार दवार रखे जाते है जो शांति ,रोज़ी रोटी, सीखने और किरपा के प्रतीक माने जाते है । इस के इलावा यह चार दवार चारों धर्मो के व्यक्तियों का भी स्वागत करते है ,अर्थात गुरुद्वारे में कोई भी आ सकता है । किसी के साथ कोई भेदभाव नही किया जाता । श्री हरमंदिर साहिब जी गुरुद्वारा सिक्खों का विश्व प्रशिद्ध गुरुद्वारा है |
इस के इलावा सिक्खों के दसवे गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिक्ख पुरषों को अपने नाम के पीछे “सिंह” और महिलाओं को “कौर” लगाने का आदेश भी दिया है । जो के उन्होंने महिलाओं और पुरषों में बराबर समानता लाने के लिए किया। सिंह का अर्थ होता है “शेर” जो किसी से नही डरता है स्वाए उस सतगुरू परमात्मा के और कौर का अर्थ होता है राजकुमारी।
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने जब 1699 को बैसाखी बाले दिन जब सिक्खों को अमृत सका कर खालसा पंथ की स्थापना की थी , उस दिन उन्होंने सिक्खों को पाँच ककार केश ,कंघा, कड़ा, करपान और कशेरा भी प्रदान किए । जो के हर सिक्ख की पहचान है।
सिक्ख धर्म के पांच ककार
- केश :केश सिक्खों में एक अहम रोल निभाते है । सिक्ख इन्हें अकाल पुरख की देन मानते है । इसलिए कभी भी कोई सिक्ख अपने बाल नही कटवाता है ।
- कंघा :गुरु जी ने कंघा सिक्खों को उनके केशों की सफ़ाई के लिए प्रदान किया । हर सिक्ख दिन में दो बार कंघे से अपने केशों की सफ़ाई करता है ।
- कड़ा :कड़ा सिक्ख धर्म में एकता का प्रतीक भी माना जाता है और जरूरत पड़ने पर सिक्ख इसे हत्यार के रूप में भी बरतते है । कड़ा हमेशा दाईंने हाथ मे ही पहना जाता है । कड़ा सिक्खों को हिम्मत प्रदान करता है ।
- करपान :गुरु जी ने सिक्खों को करपान अपनी और बेसहारों की रक्षा के लिए प्रदान की थी ।
- कशेरा :कशेरा सिक्खों में अपने तन को ढकने के लिए पहना जाता है ।
इस के इलावा एक सिक्ख की विशेषता है के एक सिक्ख हमेशा सीखता रहता है । सिक्ख हमेशा हिंसा के खिलाफ़ आवाज़ उठाता है , सभी की सहायता करता है , कभी हिंसा नही करता और हमेशा महिलाओं को आदर और सम्मान की नजर से देखता है ।