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श्री गुरु अंगद देव जी

श्री गुरु अंगद देव जी { Sri Guru Angad Dev Ji }, जिन्हें भाई लहना भी कहा जाता था । श्री गुरु अंगद देव जी सिक्ख धर्म के दूसरे गुरु हुए थे । जब श्री गुरु नानक देव जी ने इन्हें गुद्दी सोंपी थी तो उन्होंने इनका नाम बदलकर भाई लहना से अंगद कर दिया । गुरु नानक देव जी भाई लहना को अपना ही अंग बताते थे इसी लिए गुरु जी ने उनका नाम अंगद रखा । अंगद फिर आगे जा कर श्री गुरु अंगद देव जी कहलवाए।

इन्हों ने ही आगे चल कर श्री गुरु नानक देव जी द्वारा अर्जित किए गए ज्ञान का आगे प्रसार किया । इन्होंने बताया के परमात्मा एक है और वह सब मे वास करते है । इसलिए सबको मिलकर रहना चाहिए ।
श्री गुरु नानक देव जी द्वारा चलाई लंगर प्रथा को इन्होंने आगे बढ़ाया । गुरु अंगद देव जी ने शरीरक तंदरुस्ती के लिए मल भी अखाड़े खोले ।
श्री गुरु अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि की खोज की ,जिसके आधार पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की रचना की गई ।

सिख धर्म के दस गुरु { Ten Gurus of Sikhism }

S.NONAMEYEAR
1.Sri Guru Nanak Dev Ji1469-1539
2.Sri Guru Angad Dev Ji1504-1552
3.Sri Guru Amar Das Ji1479-1574
4.Sri Guru Ram Das Ji1534-1581
5.Sri Guru Arjan Dev Ji1563-1606
6.Sri Guru Hargobind Ji1595-1644
7.Sri Guru Har Rai Ji1630-1661
8.Sri Guru Harkrishan Ji1656-1664
9.Sri Guru Teg Bahadur Ji1621-1675
10.Sri Guru Gobind Singh Ji1666-1708

प्ररंभिक जीवन और परिवार { Early Life and Family }

श्री गुरु अंगद देव जी का जन्म 31 मार्च 1504 को ” सराय नगर , मुक्तसर ” में हुआ । वह एक पंडित परिवार से संबंध रखते थे और शुरू में दुर्गा माता के बहुत बड़े भगत थे ।
गुरु अंगद देव जी के पिता का नाम फेरु मल था जो के एक छोटे व्यापारी थे और इनकी माता का नाम दिया कौर था ।

श्री गुरु अंगद देव जी का विवाह { Marriage of Sri Guru Angad Dev Ji }

श्री गुरु अंगद देव जी का विवाह 16 साल की उम्र में ही कर दिया गया था । सन 1520 को इनका विवाह हुआ । इनकी पत्नी का नाम बीबी खिवी था और बीबी खिवी ही एक ऐसी महिला है जिनका नाम ” श्री गुरु ग्रंथ साहिब ” में दर्ज है ।
गुरु अंगद देव जी और बीबी खिवी के दो पुत्र और दो पुत्रिया थी। पुत्र दाससु जी और दातू जी और पुत्रिया बीबी अमरो और बीबी अलखनी जी ।

श्री गुरु अंगद देव जी का श्री गुरु नानक देव जी से मिलना { Sri Guru Angad Dev Ji meeting Sri Guru Nanak Dev Ji }

सन 1526 में चारो तरफ बाबर का आतंक फैला हुआ था । सभी तरफ लूट मार चल रही थी । जिस वजह से भी लहना ” अंगद देव ” को अपने परिवार की सुरक्षा के लिए अपना गांव छोड़ कर खडूर साहिब जाना पड़ा ।
खडूर साहिब में ही भाई लहना ” अंगद देव ” की भेंट श्री गुरु नानक देव जी से हुई । गुरु जी से मिलने से पहले भाई लहना माता दुर्गा का बहुत बड़ा भगत हुआ करता था ।

पर जब वह गुरु जी से मिला तो वह गुरु जी के विचारों से इतना प्रभावित हुआ के उन्हें अपना गुरु मान उनका दास बनकर उनकी सेवा करने लगा ओर उनके साथ ही करतारपुर चला गया ।

भाई लहना का श्री गुरु अंगद देव जी बनना { Bhai Lahna’s becoming Shri Guru Angad Dev Ji }

भाई लहना ” अंगद ” ने गुरु नानक देव जी की निस्वार्थ मन से सेवा की । गुरु जी भाई लहना को जो भी आदेश देते वह उसे बिना किसी सवाल के कर दिया करते । गुरु जी ने भाई लहना की सेवा भावना को परखने के लिए बहुत सारी परीक्षाएं भी ली और भाई लहना हर परीक्षा में सफल रहा ।

गुरु नानक देव जी भाई लहना की सेवा से बहुत प्रसन्न थे । गुरु जी ने भाई लहना को अपना पूरा ज्ञान प्रदान किया ।
आखिर में गुरु जी ने भाई लहना की योग्यता को देखते हुए 13 जून 1539 को उन्हें अंगद नाम देकर अगला गुरु नियुक्त कर दिया । परन्तु गुरु नानक देव जी के स्वर्गवास के बाद उनके पुत्रो ने गुरु अंगद देव जी का विरोध किया । वह चाहते थे के गुरु उनमे से किसी एक को चुना जाए । पर अब सभ गुरु नानक देव जी के बाद गुरु अंगद देव जी को अपना अगला गुरु मान चुके थे । परंतु गुरु नानक देव जी के पुत्रों के विरोध के कारण गुरु अंगद देव जी करतारपुर ना रहे और वापस खडूर साहिब जा कर गुरु जी द्वारा अर्जित ज्ञान को बांटने लगे।

श्री गुरु अंगद देव जी का आखिरी समय { Last time of Shri Guru Angad Dev Ji }

गुरु अंगद देव जी खडूर साहिब में गुरु नानक देव जी की शिक्षा का प्रसार कर रहे थे । वह सब को एकता का संदेश देते और सब का मार्गदर्शन करते । बहुत सारे लोग उनसे जुड़ने लगे थे । गुरु अंगद देव जी की चर्चा सुन बाबर का पुत्र ह्मायो भी गुरु जी का आशीर्वाद लेने आया और उनसे बहुत प्रभावित हुआ ।
इसी दौरान गुरु जी की भेंट अमर दास जी से हुई । अमर दास जी एक बहुत ज्ञानी पंडित थे । परन्तु जब वह गुरु जी से मिला तो उनके विचारों से बहुत प्रभावित हुआ। अमर दास जी ने अपनी उच्च जाति को छोड़ कर खुद को गुरु जी की सेवा में लगा दिया ।

गुरु अंगद देव जी ने अपना उत्तराधिकारी भी अमर दास जी को ही चुना ।आखिर 29 मार्च 1552 में गुरु अंगद देव जी परमात्मा के सिमरन में वलीन हो गए और अपना शरीर रूपी चोला त्याग दिया ।

गुरु ग्रंथ साहिब में योगदान { Contribution to Guru Granth Sahib }

श्री गुरु ग्रंथ साहिब में , श्री गुरु अंगद देव के 62 श्लोक दर्ज है । इसके इलावा उन्होंने श्री गुरु नानक देव जी की जीवन साखी भी लिखी है ।

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