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श्री गुरु राम दास जी

श्री गुरु राम दास जी { Sri Guru Ram Das Ji }, सिक्खों के चौथे गुरु हुए है । उनका सिक्ख धर्म मे अहम योदगन रहा है । श्री गुरु राम दास जी ने अपने पहले के गुरुओं के नक्से कदम पर चलते हुए ही सिक्खी का विस्तार किया और लोगों को सही मार्ग दिखाया। श्री गुरु राम दास जी ने 638 भजन, 30 राग, 246 पद, 138 श्लोक, 31 अष्टपद और 8 वारो की रचना की जो के “श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी” मे माजूद है ।

गुरु जी ने सिक्खी के प्रचार के लिए “अमृतसर शहर” की खोज भी की जो के सिक्ख धर्म का केंद्र बना । गुरु जी बेहद ही दयालु और निम्र सुभाव के धनी थे । उन्होंने बड़ी ही निम्रता से सिक्खी का प्रचार किया । गुरु जी के नेतृत्व में लाखों की गिनती में हिन्दू और मुस्लिमों ने सिक्ख धर्म को अपनाया ।

प्ररंभिक जीवन और परिवार { Early Life and Family }

श्री गुरु राम दास जी का जन्म 24 सितंबर 1534 को ” लाहौर ,पंजाब ” में हुआ । इनका बचपन का नाम भाई जेठा था । इनके पिता जी का नाम हरी दास सोंधी था और माता दया कौर थी । गुरु जी का परिवार बेहद गरीब था । ऐसे में ही जब गुरु जी की आयु 7 वर्ष की हुई तो उनके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया ।

गुरु जी का बचपन बहुत परेशनियों से गुजरा । बचपन मे ही माता-पिता की मौत के कारण इनके सभी रिस्तेदार इन्हें मनहूश समझते थे । कोई बच्चा भी इनके साथ खेला नही करता था । माता-पिता की मौत के बाद इनकी नानी इन्हें लाहौर से बासरका ले गई । गुरू जी अपना और अपनी नानी का पालन-पोषण करने के लिए अपनी नानी दोवारा उबाले हुए चन्ने बेचा करते थे । गुरु जी इतनी ग़रीबी होने के बावजूद कई गरीबों को मुफ़्त में भी चन्ने दे दिया करते थे ।

श्री गुरु राम दास जी का विवाह { Marriage of Sri Guru Ram Das Ji }

गुरु राम दास जी का विवाह इनके गुरु श्री गुरु अमर दास जी की छोटी पुत्री बीबी भानी जी से हुआ | गुरु जी तीन पुत्र पृथ्वीचंड ,महादेव और श्री गुरु अर्जुन देव जी थे | श्री गुरु अर्जुन देव जी , गुरु जी सबसे छोटे पुत्र थे जो गुरु जी के बाद गद्दी अगले उत्तराधिकारी बने |

 

गुरु से मिलाप { Meeting the master }

जब गुरु राम दास जी अपनी नानी के साथ “बासरका” गांव चले गए , वही पर वह गुरु अमर दास जी से मिले । गुरु राम दास जी गुरु अमर दास जी से इतने प्रभावित हुए के वह वही पर ही रह गए। गुरु जी ने 12 वर्ष की आयु में सिक्खी धारण कर गुरु अमर दास जी की सेवा में अपना मन लगा लिया । गुरु जी वहा पर आई हुई संगतों की सेवा करते और प्रति दिन गुरु अमर दास जी की सेवा में अपना समय वतीत करते । गुरु राम दास जी ,गुरु अमर दास जी के लिए भोजन पकाते , उनके कपड़े धोते और उनके पैर दवाते थे । गुरु जी ने श्री गुरु अमर दास जी की निःस्वार्थ सेवा की ।

श्री गुरु राम दास जी का गुरु बनना { To become Guru of Sri Guru Ram Das Ji }

श्री गुरु अमर दास जी ,राम दास की सेवा से बहुत खुश थे । वह गुरुगद्दी के लायक भी अपने दोनों दामादों भाई राम जी और भाई जेठा जी { गुरु राम दास जी } को ही समझते थे । गुरु अमर दास जी ने दोनों में से गद्दी के योग चुनाव करने के लिए उनकी परीक्षा ली । गुरु अमर दास जी ने भाई राम जी और भाई जेठा जी को एक तख़्त बनाते के लिए कहा , जहाँ पर वह बैठ कर संगत को प्रवचन दे सके । जब भाई राम जी और भाई जेठा जी ने तख़्त बना दिया तो गुरु जी ने कहा के इसे दोवारा बनाओ यह सही नही बना है ।

गुरु जी ने भाई राम जी और भाई जेठा जी से दो तीन बार तख़्त हटा कर द्वारा बनवा लिया । तब गुरु जी के बड़े दामाद ने थक कर गुरु जी को अगली वार तख़्त बनाने से मना कर दिया , परंतु भाई जेठा जी ने सात बार तख़्त हटा कर द्वारा बनाया । गुरु जी ने फिर कहा के तख़्त सही नही बना है इसे द्वारा बनाओ । तब भाई जेठा जी ने कहा के जरूर में ही कोई गलती करता हो जो तख़्त सही नही बन पा रहा है , किरपा आप मेरा मार्गदर्शन करें । श्री गुरु अमर दस जी ,भाई जेठा { गुरु राम दास } के इस निम्रता पुर्ण जवाब से बहुत ख़ुश हुए और गुरु जी ने 1574 में भाई जेठा को अगले गुरु की उपाधि दे दी । इसके बाद भाई जेठा श्री गुरु राम दास जी कहलवाए ।

अमृतसर की खोज { Discovery of Amritsar }

श्री गुरु नानक देव जी ने सिक्खी का प्रचार करने के लिए ” करतारपुर साहिब ” वसाया था । जो के सिक्खी के प्रचार का केंद्र माना जाता था । उनके बाद श्री गुरु अंगद देव जी ने खडूर साहिब और श्री गुरु अमर दास जी ने सिक्खी के केंद्रीय स्थान गोविंदवाल को वसाया ।
गुरु अमर दास जी ने , श्री गुरु राम दास जी से भी एक शहर वसाने के लिए कहा । जहां से सिक्खी का और विस्थार किया जा सके।

गुरु अमर दास जी की बात पर अमल करते हुए , गुरु जी ने एक व्यापारी से 700 रुपए में बड़ी जगा लेकर उस जगा में 500 गांव वसाए और पानी की समस्या को पूरा करने के लिए एक सरोवर भी खुदवाया । जिसका नाम ” अमृत सरोवर ” रखा गया । सरोवर के नाम से ही इस शहर का नाम अमृतसर पड़ा। आज अमृतसर सिक्खी का एक बड़ा केंद्रीय स्थान है ।

श्री गुरु राम दास जी का आखिरी समय { Last time of shri guru ram das ji }

श्री गुरु राम दास जी ने अपने आखिरी समय मे गद्दी के योग अपने सबसे छोटे पुत्र ” श्री गुरु अर्जुन देव जी ” को समझा। गुरु जी अपने पुत्र को अगला गुरु नियुक्त किया और 1 सितंबर 1581 को ” गोविंदवाल ,पंजाब” में गुरु जी अपनी अंतिम समाधि में वलीन हो गए ।

 

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