श्री गुरु तेग बहादुर जी { Sri Guru Tegh Bahadur Ji } सिक्ख धर्म के नोवे गुरु हुए है । इनका सिक्ख धर्म मे अहम रोल रहा है । श्री गुरु नानक देव जी के बाद यह दूसरे गुरु हुए है जिन्होंने सबसे ज्यादा चल कर सिक्खी का प्रचार किया । गुरु जी शास्त्र और शस्त्र विद्या के भी धनी थे । गुरु जी का शुरुआत में नाम त्याग मल रखा गया परंतु जब श्री गुरु हर गोबिंद जी ने इन्हें युद्ध मे तेग चलाते देखा तो उन्होंने कहा के आप तेग के धनी हो । उस दिन से गुरु जी ने इन्हें त्याग मल से तेग बहादुर नाम दे दिया ।
गुरु जी हमेशा दूसरों की सहायता के लिए तत्पर रहते थे । गुरु जी ने संगतों को ज्ञान का पाठ पढ़ाने के साथ-साथ कई भ्रम, गलत रीति रिवाजों और नशे जैसे विकारों से भी मुक्ति दिलाई । गुरु जी का आदि ग्रंथ “श्री गुरु ग्रंथ साहिब” में भी अपना एक अलग योगदान है । गुरु जी ने 116 काव्य भजनो की रचना की है , जो के श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी मे माजूद है ।
जन्म और परिवार { Early Life and Family }
गुरु जी का जन्म 18 अप्रैल 1621 को हुआ । गुरु जी के पिता “श्री गुरु हर गोबिंद जी” थे जो सिक्खों के छठे गुरु थे और माता नानकी जी थी । गुरु जी हर गोबिंद जी के सबसे छोटे पुत्र थे । जब गुरु हर गोबिंद जी ने अगले गुरु की नियुक्ति कर दी थी तो वह अपनी पत्नी माता नानकी जी और पुत्र तेग बहादुर के साथ बकाला जा कर रहने लगे । गुरु तेग बहादुर जी 1640 से 1664 तक बकाला में ही रहे ।
श्री गुरु तेग बहादुर जी का वैवाहिक जीवन { Marital Life of Sri Guru Tegh Bahadur Ji }
गुरु जी का विवाह 3 फ़रवरी 1633 को माता गुज़री जी के साथ हुआ । गुरु जी ज़्यादातर समय ध्यान में ही वलीन रहा करते थे जिस कारण विवाह के 32 वर्ष बाद गुरु जी के घर पुत्र “श्री गुरु गोबिंद सिंह जी” का जन्म हुआ ।
गुरु के रूप में सामने आना { Come to the fore }
जब आठवें गुरु श्री गुरु हर कृष्ण जी ने अपनी अंतिम समाधि ली तो उन्होंने अगले गुरु की और ईशारा करते हुए बाबा बकाला कहा । जिससे यह स्पष्ठ हो गया के अगले गुरु बकाला गांव में है । कई लोगों ने संगतों से भेंट के रूप में धन प्राप्त करने के लिए बकाला जा कर नकली गुरु का भेष धारण कर लिया ।
पर श्री गुरु तेग बहादुर जी का पता संगतों को तब चला जब एक बहुत बड़े व्यापारी मख्खन शाह का जहाज पानी मे फस गया और उसने सच्चे गुरु को याद कर जे प्रार्थना की के अगर वह बच गया तो गुरु जी को 500 सोने की मोहरे भेंट करेगा ।
जब मख्खन शाह स्लामत लौट आया तो उसने गुरु का पता पूछा और गुरु की खोज में वह बकाला पहुँच गया । बकाला पहुँच कर मख्खन शाह ने देखा के बहुत सारे बहरूपिये गुरु जी का भेष धारण कर बैठे थे । मख्खन शाह जिस भी गुरु से मिलता उसे 2 सोने की मोहरे भेट कर देता ।
पर जब वह श्री गुरु तेग बहादुर जी से मिला तो गुरु जी ने मख्खन शाह को कहा के तुमने तो हमे 500 मोहरे भेट करने को कहा था तुम तो 2 ही दे रहे हो । जिससे मख्खन शाह को विश्वास हो गया के जहि सच्चे गुरु है और उसने एक मकान की छत पर चढ़ कर सभी को बताया के गुरु जी मिल गए । गुरु जी के मिलने के बाद सभी सँगते गुरु जी के दर्शनों के लिए इकठ्ठी हो गई और सभ को गुरु जी का पता चल गया।
सिक्ख धर्म का प्रचार { Propagation of sikhism }
गुरु जी ने बाकी गुरुओं की तरह ही सिक्ख धर्म का प्रचार किया। गुरु जी ने सिक्खी का नया केंद्र बसाने के लिए 1665 में बिलासपुर के राजा से 500 रुपए में जमीन ख़रीदी और नया नगर बसाया जिसका नाम उन्होंने चक नानकी रखा । यह नगर गुरु जी ने अपनी निगरानी में बनवाया । नगर का नक्शा गुरु जी ने ख़ुद तैयार किया था । आगे चल कर इस नगर को आनंदपुर साहिब के नाम से जाना जाने लगा ।
इस के इलावा गुरु जी ने कई राज्य में जा कर भी सिक्ख धर्म का ज्ञान संगतों में बांटा। गुरु जी ने आगरा ,मथुरा, इलाहवाद ,कानपुर ,बनारस ,पटना जैसे नगरों का दौरा किया । गुरु जी का परिवार भी उनके साथ था । पटना में दौरे के दौरान ही माता गुज़री जी ने पुत्र गोबिंद को जन्म दिया ।
श्री गुरु तेग बहादुर जी का शहीदी प्राप्त करना { Getting martyrdom of Sri Guru Tegh Bahadur Ji}
उस समय मुग़ल राजा औरंगजेब के शासन था । औरंगजेब ने इस्लाम धर्म को बढ़ाने के लिए हिंदु और अन्य धर्मों को ख़त्म करना शुरू कर दिया । बहुत से लोगों को औरंगजेब ने डरा कर इस्लाम धर्म मे सामिल कर लिया । इस के इलावा औरंगजेब ने हिंदुओं पर हिंदु होने का कर भी लगा दिया , तीर्थ यात्रायों पर कर लगा दिया , हिंदुओं के कई मंदिर भी तुड़वा दिए गए जिसमे कुछ सिक्ख गुरद्वारों भी सामिल थे । कश्मीर में हिन्दू धर्म चर्म पर था जिस वजह से औरंगजेब ने कश्मीर में पंडितों और ब्राह्मणों को सताना शुरू कर दिया ।औरंगजेब के अत्याचार से बचने के लिए सभी कश्मीरी पंडित और ब्राह्मण गुरु जी के पास सहायता के लिए पहुँचे। गुरु जी ने पंडितों के कहने पर औरंगजेब से बात करने का फ़ैसला लिया ।
जब गुरु जी दिल्ली के लिए रवाना हुए तो औरंगजेब के कहने पर मीर मोहम्मद खान ने गुरु जी को रास्ते मे ही गिरफ़्तार कर लिया । औरंगजेब ने गुरु जी को जबरन इस्लाम धर्म धारण करने के लिए कहा परंतु गुरु जी ने इस्लाम धारण नही किया । गुरु जी को बहुत सारे तसीहे भी दिए गए । गुरु जी के साथ उनके साथी दयालदास, मत्तीदास और सत्तीदास भी थे । गुरु जी को डराने के लिए दयालदास को गुरु जी के सामने ही कोयले से जला कर , मत्तीदास जी को आरे से काट कर और सत्तीदास जी को टुकड़ो में काट कर शहीद कर दिया गया ।
इतना सभ होने पर भी गुरु जी जब अपने धर्म पर अटल रहे तो औरंगजेब ने 11 नवंबर 1675 को गुरु जी को सभी जनता के सामने जल्लाद से शीश कटवा कर उन्हें शहीद करवा दिया । लोगों की भीड़ में से भाई जैता जी गुरु जी का शीश लेकर मुग़लो की सेना के सामने से निकल गए और सिक्खों ने गुरु जी का धड़ भी एक गड्डे में छुपा कर वहा से निकाल लिया । जिसके बाद औरंगजेब को समझ आ गया के सिक्खों को हराना आसान नही है । आनंदपुर साहिब जी मे गुरु जी के शीश का अंतिम संस्कार कर गुरु जी को विधा किया गया ।