श्री निवास रामानुजन् { Sri Niwas Ramanujan } एक अैसा नाम जो कि भारत ही नहीं बलकि पुरे विश्व में बड़े सम्मान से लिया जाता है | रामानुजन् गणितज्ञ विज्ञानिक थे | वह एक भारतीय थे | उन्होने गणित के स्तर में अैसी-अैसी खोजे की है जो अपने आप में ही बहुत अविश्वसनीय है |
श्री निवास रामानुजन् जी ने कुल 3884 प्रमेयों की ख़ोज की थी | इसके इलावा उन्होने और भी बहुत सारी थेओरेम्स का आविष्कार किया था, जिसमे से बहुत सारी आज भी सिद्ध नहीं की गई है और बहुत बड़े -बड़े गणितज्ञ उनपर काम कर रहे है |
रामानुजन् बहुत ही धार्मिक और निम्र थे | वह बहुत शांत स्वभाव के थे | कहते है के वह इतने निम्र थे के अगर उनसे कोई गुस्सा भी हो जाता तो वह बहुत अधिक समय उन से गुस्सा भी नहीं रह पाता था |
श्री निवास रामानुजन् जी नामगिरी देवी जो कि उनकी कुल देवी थी, उनके बहुत बड़े भक्त थे | वह अपना ज्यादा समय भी नामगिरी देवी कि मंदिर में ही बिताया करते थे | वह वही पर ही जमीन पर चाक से लिख कर गणित का अभ्यास भी किया करते थे | उन्हें नामगिरी देवी पर अटूट विश्वास था | रामानुजन् अक्सर कहा करते थे कि उन्हें सपनों में नामगिरी देवी दर्शन देती है | नामगिरी देवी ही है जो उन्हें सपनों में गणित के अलग-अलग सूत्र देती है और वह वस उन्हें याद करके लिख लेते है |
रामानुजन् बहुत ही वचित्र प्रतिभा थे | उन्होने अपना पूरा जीवन गणित के नाम समर्पित कर दिया था | परंतु वह लम्बे समय तक अपना जीवन वतीत नहीं कर पाए | मात्र 32 वर्ष की आयु में ही यह महान गणितज्ञ इस दुनिया को अलविदा कह कर चला गया | आज पुरे भारत में इनके जन्म दिन 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस { NATIONAL MATHEMATICS DAY } के रूप में मनाया जाता है |
प्रारंभिक जीवन और परिवार { Early Life and Family }
श्री निवास रामानुजन् जन्म 22 दिसंबर 1887 को भारत के दक्षिणी भूभाग में स्थित मद्रास तब { तमिलनाडु } के ईरोड नामक गांव में हुआ था | इनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था | इनके पिता जी का नाम श्री निवास अय्यंगर था जो की एक कपड़े की दुकान पर क्लर्क का काम किया करते थे और इनकी माता का नाम श्री मती कोमलताम्मल था | वह एक गृहिणी के साथ-साथ मंदिरो में भजन भी गाया करती थी | वह बहुत धार्मिक विचारों वाली थी और भगवान में अटूट विश्वास रखती थी |
रामानुजन् की माता दोवारा रामानुजन् को भगवद गीता,रामायण, महाभारत आदि का ज्ञान दिया गया था, जिस वजह से रामानुजन् भी वचपन से ही बहुत धार्मिक स्वभाव के हो गए थे | परंतु रामानुजन् का वचपन इतना सरल नहीं विता था | उन्हें अपने प्रारंभिक जीवन में बहुत सारी परेशानियो से हो कर गुजरना पडा था | रामानुजन् का परिवार बहुत ही गरीब था, इसके इलावा वचपन से ही रामानुजन् को स्वास्थ्य में भी बहुत सारी परेशानिया झेलनी पड़ी | उन्हें चेचक और अन्य रोग भी झेलने पड़े |
रामानुजन् ने 3 वर्ष की आयु तक बोलना भी प्रारंभ नहीं किया था, जिस वजह से सब को लगने लगा था के कही वह गूंगे तो नहीं है |
शिक्षा { Education }
शुरुआत में रामानुजन् को एक लोकल स्कूल में दाखिला दिलाया गया | 1 अक्टूबर 1892 को उनकी शिक्षा का प्रारंभ हुआ | लेकिन रामानुजन् शुरुआत में बिलकुल भी पढ़ाई में दिलचस्पी नहीं देते थी | वह स्कूल जाने के नाम से भी डरा करते थे | वह पड़ने में भी बहुत कमजोर थे |
परंतु बाद में उन्होने शिक्षा में अैसी रुचि दिखाई कि 10 वर्ष की आयु में उन्होने प्राईमरी शिक्षा के दौरान पुरे जिले में सबसे अधिक अंक प्राप्त किए |
रामानुजन् अपना सबसे अधिक समय गणित पड़ने में लगाया करते थे | देखते ही देखते उनकी गणित में रुचि इतनी बढ़ गई के उन्होने मात्र 13 वर्ष की आयु में ही स्कूल ही बल्कि कॉलेज के स्तर का गणित भी पड़ लिया था |
उनकी हाई स्कूल की परिक्षा में उन्होने अंग्रेजी और गणित में सबसे ज्यादा अंक प्राप्त किए थे, जिस कि लिए उन्हें छात्रवृत्ति भी मिली |
इसके बाद अपनी ग्यारवीं कक्षा के दौरान रामानुजन् अपना पूरा समय गणित पड़ने में ही वतीत करने लगे थे | रामानुजन् पूरा दिन बस गणित में ही डूबे रहा करते थे, उन्हें यह तक लगने लगा था कि बस गणित ही उनका जीवन है | वह अन्य किसी विष्य पर ध्यान नहीं दे रहे थे बल्कि अन्य विष्य की कक्षा में भी वह गणित के सवालों को ही हल करने में लगे रहा करते थे | जिसका नतीजा यह हुआ के ग्यारवीं की परिक्षा में वह गणित को छोड़ कर बाकी सभी विष्यों में फ़ैल हो गए | बाकी सभी विष्यों में खराब प्रदर्शन की वजा से उनकी छात्रवृत्ति भी बंद कर दी गई |
छात्रवृत्ति बंद होने और घर की आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण उन्हें अपनी शिक्षा वही पर छोड़नी पड़ी |
रामानुजन् ने बाद में अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के लिए 1907 में दोवारा 12वी कक्षा की परिक्षा प्राइवेट दी थी परंतु तब भी वह फ़ैल हो गए थे | जिस के बाद उन्होने मन बना लिया था कि अब वह आगे पड़ेगे ही नहीं |
उन्होने स्कूल की पढ़ाई तो छोड़ दी थी परंतु उनका गणित के प्रति प्रेम कभी कम नहीं हुआ | वह अब भी पूरा दिन गणित में ही डूबे रहते | वह गणित के विष्य में नए-नए शोध करते रहते थे |
उन्हें गणित में महानतम ज्ञान की प्राप्ति तब हुई जब उनके एक कॉलेज के मित्र ने उन्हें { PURE AND APPLIED MATHEMATICS } की एक किताब दी थी | वह किताब G.S. CARR’S दोवारा लिखी गई थी जिसमे 5000 प्रमेय सामिल थे | रामानुजन् ने 16 वर्ष की आयु में यह किताब पूरी पड़ ली थी | जिससे उनका गणित का ज्ञान अलग ही स्तर पर पहुँच गया था |
श्री निवास रामानुजन् का विवाहिक और ग्रस्त जीवन { Married and obsessed life of Shri Niwas Ramanujan }
1908 में रामानुजन् के माता पिता ने उनका विवाह जानकी नामक एक कन्या से करवा दिया था | विवाह के बाद रामानुजन् की परेशानिया और अधिक बढ़ गई थी | उनके पास कोई डिग्री और बारवीं की शिक्षा का पूरा ना होने के कारण उन्हें कही पर भी कोई जॉब नहीं मिल रही थी | वह कई जगहों पर जॉब की तलाश में घूमते परंतु उन्हें कोई जॉब ना मिलती | वह अपने घर का खर्चा चलाने के लिए ट्यूशन पढ़ाया करते थे | ट्यूशन से मासिक 5 रुपए वह कमा पाते थे जो के पर्याप्त नहीं थे |
उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी | घर भी बहुत छोटा था | घर में एक ही पलँग होने की वजय से रामानुजन् जमीन पर सोया करते थे और अपनी पत्नी को पलँग पर सोने दिया करते थे |
यह समय रामानुजन् कि लिए बहुत ही कठनाइयों भरा था,परंतु उनकी पत्नी का उन्हें हमेशा संयोग रहा |
मद्रास में क्लर्क का कार्य करना { Working as a clerk in Madras }
बहुत जगहों पर भटकने के बाद रामानुजन् नौकरी की तलाश में मद्रास आ गए | वहा पर वह जाने माने गणितज्ञ विद्वान डिप्टी कलेक्टर श्री वी. रामास्वामी अय्यर से मिले | रामानुजन् उन्हें अपना गणित का कार्य दिखाते है और अपने लिए एक नौकरी की मांग भी करते है |
रामास्वामी उनके कार्य से बहुत प्रभावित होते हैं और जिला अधिकारी श्री रामचंदर राव से कह कर उन्हें 25 रुपए मासिक एक क्लर्क की नौकरी दिलवाते है | रामानुजन् मद्रास में लगभग एक साल तक कार्य करते है और साथ में अपने गणित के शोध को भी जारी रखते है |
रामानुजन् वहीं पर कार्य के दौरान अपना एक शोधपत्र ” बरनौली संख्याओं के कुछ गुण ” भी प्रकाशित करते है |
सभी उनके ज्ञान और प्रतिभा को बहुत सराहते है और उन्हें जही तक सीमत ना रह कर आगे बड़ने के लिए प्रेरत करते है |
प्रोफेसर हार्डी से पत्र संवाद { Letter to Professor Hardy }
एक समय अैसा आता है जब रामानुजन् यह सोचते है कि उन्हें अपने गणित के शोध को और भी आगे बढ़ाना चाहिए, जिसके लिए उन्हें एक बहुत ही प्रतिभाशाली गणितज्ञ सहायक की जरूरत महसूस होती है |
तभी रामानुजन् अपने मित्रो के कहने पर इंग्लैंड के प्रशिद्ध गणितज्ञ प्रोफेसर हार्डी को पत्र लिखते है | वह उस पत्र में अपने गणित के कार्य को जोड़ कर भेजते है और उनसे प्रार्थना करते है कि वह उनके गणित के काम को देखे और उनके शोध में उनकी सहायता करे | हार्डी रामानुजन् के गणित के कार्य को देखते है और अपने मित्र लिट्ट्लवूड के साथ मिलकर ढाई घंटे तक उसका अध्ययन करते है | पूरा अध्यान करने के बाद प्रोफेसर हार्डी इस नतीजे पर पहुँचते है कि रामानुजन् का कार्य गणित के विज्ञानं में क्रांति ला सकता है | वह रामानुजन् के कार्य से बहुत प्रभावित होते है | हार्डी अपने मित्र लिट्ट्लवूड से कहते है कि हमे रामानुजन् को इंग्लैंड बुलवा कर गणित के शोध के कार्य को आगे बढ़ाना चाहिए | तब वह पत्र के जवाब में रामानुजन् को इंग्लैंड आने का आमंत्रण देते है |
रामानुजन् प्रोफेसर हार्डी के इस आमंत्रण को पा कर बहुत खुश होते है, परंतु वह उन्हें इंग्लैंड आने से मना कर देते है |
पर प्रोफेसर हार्डी हार नहीं मानते और बार-बार रामानुजन् को इंग्लैंड आने के आमंत्रण भेजते रहते है जिस वजय से आखिर में रामानुजन् इंग्लैंड आने के लिए मान जाते है |
प्रोफेसर हार्डी रामानुजन् की इंग्लैंड आने के लिए पूरी विवस्था कर देते है |
इंग्लैंड पहुँच कर रामानुजन् कैब्रिज यूनिवर्सिटी में ही रहते है और प्रोफेसर हार्डी के साथ मिलकर गणित के शोध कार्य को आगे बढ़ाते है |
गणितक शोध कार्य और स्वास्थ्य का बिगड़ना { Mathematical research work and health deterioration }
इंग्लैंड में रहते हुए रामानुजन् ने प्रोफेसर हार्डी के साथ मिलकर कई शोध किए | रामानुजन् के पास अैसे कई पर्चे थे जिसमे उन्होने इंग्लैंड आने से पहले भी कई सूत्र लिखे हुए थे |
रामानुजन् का विश्वास था कि वह सब सही है परंतु उन्हें अभी तक सही सिद्ध नहीं किया गया था | प्रोफेसर हार्डी और रामानुजन् ने मिलकर उन पर काम किया और उन्हें सही साबित कर के दिखाया |
उन्होने कई नए शोधपत्र भी प्रकाशित किए | रामानुजन् के एक विशेष शोधपत्र के कारण उन्हें कैब्रिज विश्वविद्यालय की तरफ से बी.ए. की डिग्री भी दी गई और जल्दी ही उन्हें रॉयल सोसाइटी की सदस्य्ता भी मिल गई |
रामानुजन पूरा दिन अपने गणित के कार्य में लगे रहते थे | परन्तु उन्हें जो सब से बड़ी समस्या वहा रहने कि दौरान आई वो खाने की थी |
रामानुजन् शुद्ध साकाहारी थे और इंग्लैंड में साकाहारी भोजन बड़ी मुश्किल से मिला करता था | वह जो सब्जियां मिलती थी उन्हें ऊबाल कर खाया करते थे | परन्तु एक समय ऐसा आया जब इंग्लैंड में जंग के दौरान वह सब्जिया भी मिलनी बंद हो गई | तब रामानुजन् केवल फल खा कर और पानी ऊबाल कर पिया करते थे |
खराब खान-पान की वजय से रामानुजन् का स्वास्थ्य बहुत बिगड़ता जा रहा था | उनके पेट में दर्द और हाथो में सूजन आना शुरू हो गई थी | स्वास्थ्य बहुत ज्यादा बिगड़ने पर डॉक्टर को दिखाने पर पता चला के रामानुजन् को टी.वि. की बीमारी हो गई है | उस समय टी.वि. का कोई ईलाज नहीं हुआ करता था |
डॉक्टरों ने रामानुजन् को वापस भारत लौट जाने को कहा क्योकि इंग्लैंड का वातावरण रामानुजन् के अनुकूल नहीं था |
श्री निवास रामानुजन् की मृत्यु { Death of Sri Niwas Ramanujan }
अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए रामानुजन् भारत लोट आए | परंतु बहा पर भी स्वास्थ्य ने उनका बहुत अधिक साथ नहीं दिया | उनका स्वास्थ्य और भी बिगड़ने लगा था | अपने खराब स्वास्थ्य के चलते भी रामानुजन् ने गणित के प्रति अपना लगाव कम नहीं होने दिया | वह पूरा दिन किसी से मिला नहीं करते थे अथवा अपने गणित के कार्य में व्यस्थ्य रहते थे | उन्होने अपने खराब स्वास्थ्य का प्रभाव कभी भी अपने गणित के काम पर नहीं पड़ने दिया | वह नियंत्र काम करते रहते |
फिर एक दिन उनका स्वास्थ्य बहुत ज्यादा बिगड़ जाने की वजय से 26 अप्रैल 1920 को उनकी मृत्यु हो गई | वह भारत लोट कर केवल एक साल ही जिन्दा रह पाए | उन्होने मात्र 32 वर्ष की आयु तक ही अपना जीवन वतीत किया | परंतु उनके जीवन से हमे यह बात सीखने को मिलती है कि :
जीवन बड़ा होना चाहिए,
लम्बा नहीं ||