आथारासों तालिस की गर्मियों में, महारानी विक्टोरिया को यह खबर मिली कि एक किताब प्रकाशित होने वाली है, और विशेष बात यह थी कि इसमें भारत की कहानी होने वाली थी। विक्टोरिया अपने साम्राज्य के दूरबीन कुनों के प्रति बहुत रुचि रखती थी। इसलिए, उन्होंने प्रकाशक को बुलाया और किताब के बारे में जानने के लिए पूछताछ की। तत्काल किताब के पहले दो अध्यायों को महारानी के सामने प्रस्तुत किया गया। इसमें एक गिरोह का वर्णन था जो एक देवी की पूजा करता था और देवी को चढ़ावे में खून की भेंट चढ़ाता था। अक्टूबर महीने में, पूरी किताब छापी गई और यह पहली आंग्लो-इंडियन बेस्टसेलर बन गई। इस किताब ने एक नया शब्द, “ठगगर कुको एफेम,” जोड़ा, जिसका अंग्रेजी शब्दकोश में एक विशेष स्थान बन गया। 11-19 जून के बीच, यदि आप इस किताब की प्रीमियम सब्सक्रिप्शन लेते हैं, तो आपको 50% डिस्काउंट मिलेगा। इसके लिए आपको “घर50” कोड का उपयोग करना होगा। कैसे इस्तेमाल करना है यह कोड और इससे आपको कौन-कौनसा लाभ होगा, यह जानकारी आपको डिस्क्रिप्शन में दिए गए लिंक पर मिलेगी।
साल 1810 की बात है, विलियम बेंटिक मद्रास के गवर्नर थे और उन्हें यह सूचना मिली कि राहगीर गायब हो रहे हैं। शुरूवात में, इसे सामान्य घटना समझा गया, लेकिन धीरे-धीरे आय दिन की रिपोर्ट्स आने लगीं कि कार्मा लूट रहा है और इसका असर बृतिश इस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों की सुरक्षा पर हो रहा है। इस चुनौती का सामना करने के लिए, बेंटिक ने विलियम हेंड्री स्लीमैन को इस मुद्दे पर काम करने का दर्जा दिया। 1835 में, स्लीमैन ने एक ठगों का गिरोह को पकड़ा, जिसका नेतृत्व कर रहा था एक व्यक्ति जिसका नाम आपका अपना डाकैत नहीं था। जब इस गिरोह के सदस्यों के गायब होने की खबरें मिलीं, तो कम्पनी को दबाव महसूस हुआ कि कोई कदम उठाएं। साल 1828 में, विलियम बेंटिक को भारतीय अमीरली नामक व्यक्ति ने बताया कि ठगों का एक गिरोह है जो अपने नियम-कानूनों के साथ रहता है और इसे “ठग” कहा जाता है। इस गिरोह में हिन्दू, मुस्लिम और विभिन्न जातियों के लोग शामिल थे, लेकिन सभी एक ही देवी, देवी काली, की पूजा करते थे। ठगी एक विशेष मौसम में होती थी, जैसे कि किसी खास संकेत को देखकर, जैसे कि बिल्लियों का झगड़ा, कावड़े की आवाज, इत्यादि। गिरोह में सामान्यत: 30 से 50 लोग थे, जिनका लक्ष्य अक्सर यात्री था। जब इन ठगों का शिकार पहचानता था, वे उस यात्री के पीछे पड़ जाते और फिर धीरे-धीरे एक-एक करके उसके साथ जुड़ते जाते थे।
पूरे यात्री समूह को गुमराह करने के लिए, वे आपस में इशारे के लिए “रामसी” नामक एक खास कोड भाषा का इस्तेमाल करते थे। जब ये ठग आपसी रूप से जुड़ जाते, तो वे उन्हें अपनी बातों में फंसा कर मिलजुल बढ़ाते और उनका विश्वास जीत लेते। इस प्रक्रिया में, वे बहुत दिनों तक इंतजार करते। इस दौरान, “रामसी” में किसी खास कोड़ भाषा का उपयोग किया जाता था, जिसे ठगों ने “कबर” कहा। यह कबर खोदने से पहले एक विशेष पूजा भी होती थी, और इसके लिए किसी को गुड़, दही और शराब से बारी-बारी नहला कर उसमें पान और फूल चढ़ाते जाते। इसके बाद, किसी को टीका लगाकर एक नारिल फोड़ा जाता था, और नारिल फटने पर सभी इतके चाहे हिन्दू हों या मुस्लिम, जयदेवी माई की बोलते थे। इसके बाद सभी लोग बारी-बारी कबर खोदते, मरे हुए लोगों को एक ही कबर में डाला जाता था ताकि कबरें गहरी और वक्त आने पर आड़ा-तिरशा कर उसमें लाशें डाल दी जाती थीं।
इस रूप में, ये ठग एक पूरे कारवाँ को गायब कर देते, और खुद भी गायब हो जाते हैं, इसके परंतु किसी को भी शक नहीं लगता। इन ठगों में सबसे खतरनाक एक ठग का नाम था बहरमखान, जिसे सलीमायन ने आमिरली से पता चला। 1790 में बहरमखान ने ठगी की दुनिया में कदम रखा और अगले दशक में उसने 2000 ठगों का गुट बना लिया। आमिरली के द्वारा 1838 में बहरमखान को पकड़ा गया, जब तक उसने 936 लोगों का हत्या कर लिया था। यहां उल्लिखित है कि कुछ रिकॉर्ड्स में उसने सिर्फ 140 लोगों की हत्या की थी और बाकी हत्याओं में वह सिर्फ शामिल था। इसके कारण, उसका नाम विश्व के सबसे खतरनाक सीरियल किलर्स की सूची में गया था, जैसा कि किनिस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है।
कैसे ठगों का सामाजिक और नैतिक परिचय किया गया? गवर्नर जनरल विलियम बेंटिक ने ठगों से निपटने के लिए एक नया विभाग बनाया, “ठगी और डकैती डिपार्टमेंट”। इस दौरान, 1837 में 412 ठगों को फांसी दी गई और 87 को आजीवन कारावास में भेजा गया। इसके अलावा, हजारों के करीब ऐसे ठग थे जिन्हें दूर के एक टापू पर ले जाकर छोड़ दिया गया ताकि वे भारत लौट सकें। साल 1849 में बहरमखान को फांसी की सजा दी गई, जबकि उसी साल 17 जून को विलियम बेंटिक का निधन हो गया।
ठगों और ठगी के इतिहास के साथ, ब्रिटिश सरकार ने एक काला कानून भी लाया, “क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट,” जिसमें कुछ विशेष जातियों को मुझरिम घोषित कर दिया गया था। इस नए कानून के बारे में हमने पहले ही 12 अक्टूबर के एपिसोड में बताया था। 1904 में ठगों और डकैथी डिपार्टमेंट को सेंट्रल क्रिमिनल इंटेलिजेंस डिपार्टमेंट या सीआईडी में बदला गया। “ठग” शब्द को पॉपुलर कल्चर में भी अंग्रेजी भाषा से जोड़ा गया है और 21वीं सदी में भी यह शब्द हमारे सामने है जीवन के नाम।
| जीवन परिचय | |
|---|---|
| उपनाम | बुराम, बहराम, किंग ऑफ़ ठग्स |
| व्यवसाय | लुटेरा, डाकू |
| प्रसिद्ध हैं | 18वीं शताब्दी का सबसे कुख्यात ठग |
| व्यक्तिगत जीवन | |
| जन्मतिथि | 1765 |
| आयु (मृत्यु के समय) | 75 वर्ष |
| जन्मस्थान | जबलपुर, मध्य प्रदेश, भारत |
| मृत्यु कारण | फांसी |
| मृत्यु स्थान | स्लीमनाबाद, कटनी, जबलपुर, मध्य प्रदेश, भारत |
| राष्ट्रीयता | भारतीय |
| परिवार | ज्ञात नहीं |
| धर्म | हिंदू |
