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शहीद उधम सिंह

शहीद उधम सिंह { Shaheed Udham Singh } एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी जिनका नाम जितने भी सम्मान से क्यों न लिया जाए कम है । उनका बलिदान हमारे देश भारत की आज़ादी में एक बड़ा योगदान है।

उधम सिंह ,शहीद भगत सिंह , चंद्र शेखर आजाद और अन्य क्रांतिकारियों की तरह ही एक क्रांतिकारी थे, जिन्होंने माइकल ओ’डायर के द्वारा करवाए गए जलियांवाला बाग हत्या कांड का बदला लिया था। उधम सिंह ने ओ’डायर को लंदन में जाकर उनके इस पाप की सजा उन्हें भरी सभा मे गोली मार कर दी थी ।

शहीद उधम सिंह के पूरे जीवन की चर्चा आज हम इस ब्लॉग के माद्यम से करे गए । हालांके इनके जीवन पर आधरित कई मूवीज़ भी आ चूँकि है जिनमे से सरदार उधम हालहि में प्रदशि॔त हुई है । जिसमे मसहूर अभिनेता विकि कौशल ने शहीद उधम सिंह का किरदार निभाया है ।

Early life and Family { प्रारंभिक जीवन और परिवार }

शहीद उधम सिंह का जन्म 26 दिसंबर 1899 को पंजाब के संगरूर जिले के गांव “सुनाम” में हुआ । उधम सिंह बेहद ग़रीब परिवार से सम्बंध रखते थे । उनके पिता श्री टहल सिंह कंबोज रेलवे फाटक पर चौकीदार का काम किया करते थे । उनकी माता जी श्री मति नारायण कौरी कंबोज एक ग्रहणी थी । इसके इलावा परिवार में उधम सिंह का एक बड़ा भाई मुक्ता सिंह भी था । जब उधम सिंह मात्र 3 वर्ष के ही थे तभी उनकी माता जी की मृत्यु हो गई थी। जिसके बाद उनके पिता अपने दोनों पुत्रों को लेकर अमृतसर आ गए । परंतु उधम सिंह और उनके भाई मुक्ता सिंह के सर पर से जल्दी ही उनके पिता का साया भी उठ गया और दोनों भाई अनाथ हो गए ।

पिता की मृत्यु के बाद उधम सिंह के चाचा ने उधम सिंह और उनके बड़े भाई को अमृतसर के सेंट्रल खालसा अनाथालय में भर्ती करवा दिया । यह अनाथालय सिख रीति-रिवाजों से पूर्ण तौर से ग्रस्थ था। जहि पर उधम सिंह का नाम शेर सिंह से बदलकर उधम सिंह किया गया था और उनके भाई मुक्ता सिंह का नाम बदलकर साधु सिंह कर दिया गया । उधम सिंह { Shaheed Udham Singh } का शुरुआत का नाम शेर सिंह ही था।

उधम सिंह अनाथालय में अच्छी शिक्षा ग्रहण कर रहे थे और अच्छा जीवन भी बतीत कर थे परंतु तभी उनके जीवन मे एक और दुःखद घटना घटी जब 1917 में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया और उधम सिंह बिल्कुल अनाथ हो गए । जिसके बाद उधम सिंह ने 1919 में अपनी मैट्रिक की शिक्षा पूरी करने के बाद अनाथालय को छोड़ दिया।

 

Jallianwala Bagh Massacre { जलियावाला बाग़ हत्याकांड }

जलियांवाला बाग़ हत्याकांड बिशाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को हुआ था | उस दिन बाग़ में बहुत भीड़ थी और वही पर कुछ भारतीय ब्रिटिश सरकार के रोलेट एकट का बिरोध करने के लिए भी एकत्रित हुए थे | तब पंजाब के गवर्नर माइकल ओ’डायर थे । लगातार ब्रिटिश सरकार के हो रहे विद्रोह के कारन माइकल ओ’डायर ने जनरल डायर को जलियांवाला बाग़ में जाकर बिरोध कर रहे सभी भारतीयों को वहाँ से हटवाने का हुक्म दिया। भारतीय दोवारा किये जाने वाले इकठ्ठ के बारे में खबर पा कर जनरल डायर अपने सिपाहीओ को लेकर सीधा जलियांवाला बाग़ पहुंच गया और 1650 राउंड फियरिंग अँधा-धुंध बिना किसे वार्निंग के करवा दी | ये फायरिंग लगभग 10 मिंट तक चली और हजारो भारतीयों का खून वह गया |

इस घटना के दौरान सरदार उधम सिंह भी वहाँ पर मोजूद थे । क्योंकि उस दिन गर्मी बहुत ज्यादा होने के कारण उधम सिंह और उनके कुछ साथी जलियांवाला बाग़ के बाहर सभी को पानी पिलाने का कार्य कर रहे थे । उधम सिंह ने जनरल डायर को बाग़ के अंदर घुसते हुए और भारतीयों पर करवाए हमले को अपनी आँखों से देखा। उस समय उधम सिंह की आयु मात्र 17 वर्ष की ही थी । वह जे सभ बर्दास्त नही कर पाए । इस लिए उधम सिंह ने जे प्रतिज्ञा ली के जिसने मेरे देश बासियों को इस तरह बड़ी बेरेहमी से कत्ल किया है में उसको एक दिन उसके किए की सजा जरूर दूंगा और उस दिन से उधम सिंह का एक मात्र मकशद बस जनरल डायर को मारना ही रह गया।

परंतु यह काम उधम सिंह के लिए काफी कठिन था, क्योंकि जलियांवाला बाग़ हत्या-कांड के बाद पंजाब का माहौल काफी ख़राब हो चुका था । जिस वजह से ब्रिटिश सरकार ने माइकल ओ’डायर और जनरल डायर को वापिस इंगलैड आने का आर्डर दे दिया। जिस वजह से उधम सिंह को अपने मक़सद में कामजाबी पाने के लिए इंगलैंड जाना ज़रूरी हो गया था।

 

Shaheed Udham Singh Revolutionary Life { क्रांतिकारी जीवन }

जलियांवाला बाग़ हत्या-कांड के बाद सरदार उधम सिंह ने क्रांतिकारी दलों से सम्बंध बनाने शुरू कर दिए ता जो वह अपने जनरल डायर को मारने के मकसद में कामजाब हो पाए । वह बाबर अकाली दल और गदर पार्टी जैसी बड़ी क्रांतिकारी पार्टियो का हिस्सा बने । इस दौरान उधम सिंह, भगत सिंह के सदश्य से भी मिले । उधम सिंह, सरदार भगत सिंह के विचारों से बहुत प्रभावित हुए । वह उनको अपना गुरु भी माना करते थे।

इसके इलावा उधम सिंह ने देश की आज़ादी के लिए कई बड़े कदम उठाए । वह चाहते थे के सभी भारतीय एक साथ एक-जुट होकर रहे ता जो इन फिरंगियों को देश से निकाला जा सके । उधम सिंह ने देश मे ऐकता का संकेत देने के लिए अपना नाम बदलकर “राम मुहम्मद सिंह आज़ाद” भी रखा जो उस समय भारत के तीन बड़े धर्मो के नामों को जोड़कर बनाया गया था ।

उधम सिंह ने क्रांतिकारी गतिविधियों के दौरान भेष बदलने , बॉम्ब बनाने, निशाना लगाने और समुंदर के जहाज़ चलाने में भी महारत हासिल की। जब उधम सिंह को लगा कि वह अब तैयार है तब उन्होंने अपना पुश्तैनी घर बेचकर अफ़्रीका से अमेरिका और अमेरिका से फ्रांस, बेल्जियम, जर्नमी, लथानिया के रास्ते होते हुए इंगलैंड पहुंचे। वहाँ पहुँच कर उन्होंने एक छे गोलियों वाली पिस्तौल भी ख़रीदी जिससे के वह जनरल डायर की हत्या कर सके ।

उधम सिंह अभी अपने मकशद की प्लानिंग ही कर रहे थे के उन्हें भारत से क्रांतिकारी पार्टियों के ख़त आने शुरू हो गए जिस कारण उधम सिंह को वापिस भारत आना पड़ा । उस समय भारत मे ब्रिटिश सरकार दुवारा आर्म्स-एक्ट लागों किया हुआ था जिस के तहत कोई व्यक्ति अपने पास कोई हत्यार नही रख सकता था। परंतु 30 Aug 1927 को उधम सिंह आबेद हत्यार के साथ पकड़े गए और उन्हें 5 साल की सज़ा सुना दी गई।

जेल से रिहा होने के बाद उधम सिंह फिर कुछ पैसे जमा करने के बाद इंग्लैंड के लिए रवाना हुए । इंग्लैंड में रहते हुए उधम सिंह को 7 साल वहा का रंग-ढंग समझने के लिए लगे । उधम सिंह ने गुजारे के लिए इंग्लैंड में मैकेनिक, बढ़ई {carpenter}, विक्रेता इत्यादि जैसे कई कार्य भी किए।

 

Governor Michael O’Dwyer murdered { माइकल ओ’डायर की हत्या }

उधम सिंह जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के अपराधी जनरल डायर को मारना चाहते थे परंतु डायर की मौत पहले ही 23 जुलाई 1927 को 63 साल की आयु में ब्रेन हैमर नाम की बीमारी से हो गई थी। जिसके बाद उधम सिंह ने इस हत्याकांड का हुक़्म देने बाले माइकल ओ’डायर से बदला लेने का फैसला किया।

उधम सिंह चाहते तो कभी नही ओ’डायर को मार सकते थे ,उन्हें बहुत सारे मोके भी मिले। पर उधम सिंह ने ओ’डायर को उसी तरह भरी सभा मे मारने का फ़ैसला किया जैसे हजारों भारतीयों को जलियांवाला बाग़ में मारा गया था। और फिर 13 मार्च 1940 को वह दिन आ ही गया ।

13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में माइकल ओ’डायर का भाषण था । उधम सिंह ओ’डायर के भाषण में एक अंग्रेजी व्यक्ति के भेष में पहुंचे, उन्होंने एक मोटी पुस्तक के पन्नों को पिटोल के आकार में काट कर अपना पिस्तौल उसी पुस्तक में छुपा रखा था। जैसे ही माइकल ओ’डायर स्टेज पर पहुंचे तो उधम सिंह ने अपने पिस्तौल की छह की छह गोलियां ओ’डायर के छीने में उतार दी जिस कारन तत्काल ही ओ’डायर की मृत्यु हो गई ।

ओ’डायर को गोली मारने के बाद उधम सिंह वहा से भागे नही बल्कि उन्होंने अपनी मर्ज़ी से अपनी गिरफ़्तारी दी।

 

Shaheed Udham Singh receiving martyrdom { शहीदी प्राप्त करना }

माइकल ओ’डायर की मौत के जुर्म में उधम सिंह को ब्रिक्सटन जेल में रखा गया। वहाँ पर उनके साथ बहुत बुरा वयवहार किया जाता था । जेल में उधम सिंह को बुरी तरह मारा जाता था और ढंग का खाना भी नही दिया जाता थ। जिस वजह से उधम सिंह ने जेल में 42 दिन की हंगर स्ट्राइक भी की जो के ब्रिटिश अधिकारियों दुवारा 4 जून 1940 को ज़बरन उधम सिंह के नाक में नली से ढूध डाल कर तुड़वाई गई ।

उधम सिंह को उनके जुर्म के लिए सेंट्रल क्रिमिनल कोर्ट में पेश किया गया । जहाँ पर उधम सिंह ने जज के सामने बयान दिया के मैंने अपने पूरे होशो आवाज़ में माइकल ओ’डायर की हत्या की है और जलियांवाला बाग़ हत्या-कांड का बदला लिया है । जिस पर उन्हें अपने आप पर फ़क्र है।

जज ने उधम सिंह को ओ’डायर की हत्या में दोशी पा कर 31 जुलाई 1940 को फांसी देने की सज़ा सुनाई । सरदार भगत सिंह की ही तरह उधम सिंह ने फांसी का फंदा हस कर अपने गले से लगाया और यह वीर हँसते-हँसते अपने देश के लिए शहीद हो गया और छोड़ गया करोड़ो दिलों पर अपनी गहरी छाप ।

 

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